एग्रीनेशन न्यूज़ नेटवर्क
दिल्ली, 28 फरवरी 2018
भारतीय किसान यूनियन ने किसानों की आत्महत्या रोकने और किसान कर्जमुक्ति की मांग करते हुए कहा कि नेशनल सैम्पल सर्वे की 70वीं रिपोर्ट में एक किसान की परिवार की औसत मासिक आय 3844 रुपये है। जिसमें पशुपालन भी शामिल है। औसतन 4000 रुपये की मासिक आय में परिवार का पालन-पोषण सम्भव नहीं है। जिसके कारण किसान पर कर्ज का भार बढ़ रहा है। खेती किसानी में बढ़ते कर्ज के कारण किसान आत्महत्या कर रहे है। देश में जगह-जगह इन विषयों पर आन्दोलन हो रहें हैं, लेकिन सरकार आन्दोलनकारियों से वार्ता कर समाधान करने के बजाए दमनकारी नीतियां अपना रही है। किसान के नाम पर बनने वाली सरकारें भी किसानों के लिए कोई कार्य नहीं कर पा रही है। भारतीय किसान यूनियन ने निम्न मांगे राखी है-
- किसानो को फसलों का उचित एवं लाभकारी मूल्य ब्2़50 दिया जाएः- भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में ऐलान किया था कि हम किसानों को उनकी उत्पादन लागत में 50 प्रतिशत जोडकर किसानों को किसान आयोग की रिपोर्ट के आधार पर फसलों का उचित एवं लाभकारी मूल्य दिया जाएगा, लेकिन देश के वित्त मंत्री ने बजट में इसकी घोषणा गोलमोल करते हुए स्पष्ट नहीं किया है। देश के कृषि मंत्री का बयान इसके विपरित है। कृषि मंत्री द्वारा मूल्य घोषित करने का फार्मूला ।2़50 का दिया जा रहा है, जो किसानों का मंजूर नहीं है। किसानों को ब्2़50 के फार्मूले से फसलों का लाभकारी मूल्य घोषित किया जाए। कृषि मूल्य आयोग को समाप्त कर कृषि विश्वविद्यालयों की लागत से किसान की फसल उत्पादन की लागत मानी जाए।
- देश में सभी फसलों का समर्थन मूल्य एवं खरीद गारंटीः- देश में सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करते हुए फसल खरीद की गारंटी सुनिश्चित की जाए। न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर फसल खरीद गारंटी योजना शुरू की जाए। आज भी देश में किसानों की उपज समर्थन मूल्य से कम पर बिक रही है। इसे रोकने हेतु कानून बनाया जाए। सरसों की खरीद 1 मार्च एवं गेंहू की खरीद 1 अप्रैल से शुरू की जाए।
- किसानों का कर्जा पूर्णतः माफ किया जाएः- जैसा कि ऊपर संकेत दिया है कर्ज का बोझ भारत में किसानों की आत्महत्याओं में वृद्धि का मुख्य कारण है। वर्ष 2015 में अकेले महाराष्ट्र में 3000 से अधिक आत्यहत्या के मामले दर्ज किये गए हैं। प्रत्येक दिन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से आत्महत्या की खबरें आ रही हैं, लेकिन अब तक देश की सरकार द्वारा ऋण माफी के माध्यम से किसानो को राहत प्रदान करने के लिए कोई कदम नहीं उठाये गये हैं। वर्ष 2007-08 में मंदी के समय उद्योग जगत का 3 लाख करोड से भी अधिक का कर्ज माफ करते हुए राहत दी गयी थी। देश के बैंकों ने हजारों करोड रुपये का खराब ऋण माफ कर दिया है, लेकिन किसानों की आत्महत्या के बावजूद भी किसानों का कर्ज माफ नहीं किया गया है। खेती किसानी की खराब हालत को देखते हुए देश के किसानों के सभी तरह के कृषि ऋण एक बार पूर्णतः माफ किये जाए।
- कृषि क्षेत्र में लम्बी समयावधि व ब्याजरहित कर्ज का प्रावधानः- कृषि क्षेत्र के संकट को देखते हुए किसानों को लम्बी समयावधि के लिए कर दिये जाने का आवश्यकता है। किसानों को क्रेडिट कार्ड, फसली ऋण व मशीनरी हेतु पांच वर्ष के लिए शून्य ब्याज दर पर कर्ज दिया जाए।
- किसान क्रेडिट कार्डः- किसान क्रेडिट कार्ड पर कम ब्याज की सीमा को तीन लाख रूपये को बढ़ाकर पांच लाख तक करते हुए मूलधन को भी नवीनीकरण समय पांच वर्ष के साथ ही जमा किये जाने का प्रावधान करते हुए वार्षिक ब्याज जमा कराया जाए।
- कर्ज के कारण आत्महत्या करने वाले किसान परिवार के लिए नीतिः- कर्ज के कारण आत्महत्या करने वाले परिवारों की आर्थिक मदद के लिए राष्ट्रव्यापी नीति बनायी जाए।
- किसानों की न्यूनतम आमदनी तय की जाएः- देश के किसानों की मांग है कि दूसरे वर्ग की तरह किसान परिवार की भी न्यूनतम आमदनी तय की जाए। इसके लिए एक किसान आय आयोग का गठन किया जाए। उसके द्वारा निश्चित किया जाए कि एक किसान परिवार की आमदनी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी से कम न हो।
- भंडारणः- देश में कृषि फसलों का भंडारण करने हेतु किसानों के पास बहुत सारे विकल्प नहीं होते। देश में कोल्ड स्टोरेज व भंडारण हेतु प्रभावी व्यवस्था की जाए।
- जैव परिवर्तित फसलों पर रोक लगायी जाएः- भारतीय जनता पार्टी द्वारा घोषणा पत्र में वायदा किया गया था कि हम खाद्य फसलों में जैव परिवर्तित फसलों के प्रदर्शन, व्यापारीकरण और जैव परिवर्तित बीज फसल और पौधों पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाएंगे, लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में जिक्र किया गया है कि खाद्य सुरक्षा हेतु जीएम फसलों का बढाया जाना आवश्यक है। विकसित देशों में जहां पर जीएम फसलों का उत्पादन अत्यधिक है, वहां पर भी खाद्य सुरक्षा को लेकर बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भाकियू मांग करती है कि जैव परिवर्तित सरसों सहित सभी फसलों के उत्पादन पर रोक लगायी जाये और परम्परागत खेती को बढ़ावा दिये जाने हेतु कोष में वृद्धि की जाए।
- गन्ना किसानों का भुगतान कराया जाएः- देश के सभी राज्यों में पिछले दो वर्षो से गन्ने के मूल्य में कोई वृद्धि नहीं की गयी है और न ही गन्ना किसानों को उनकी फसलों का भुगतान किया जा रहा है। भारतीय किसान यूनियन मांग करती है कि सरकार गन्ना किसानों को अविलम्ब उनका भुगतान करें।
- फसल बीमा योजनाः- देश में नई फसल बीमा योजना का सरकार द्वारा व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया, लेकिन आंकड़ों से स्पष्ट है कि कम्पनियों को अधिक प्रीमियम मिला और किसानों को कम मुआवजा। जिससे स्पष्ट है कि इस योजना से केवल कम्पनियों का फायदा हो रहा है। अब तक की सूचनाओं के अनुसार दावे का भुगतान अपर्याप्त और देरी से कि या गया। उच्च बीमांकिक प्रीमियम दर लगायी गयी, केवल ऋणी किसान कवरेज के अन्तर्गत लाये जा सकें। भाकियू मांग करती है कि फसल बीमा योजना में किसान को ईकाई माना जाए। सभी महत्वपूर्ण फसलों को इसके दायरे में लाया जाए। थ्रैसहोल्ड उपज के बजाय आपदाग्रस्त क्षेत्रों में उन फसलों के लिए सम्भावित उपज का उपयोग किया जाये। जिसके लिए औसत उपज डेटा उपलब्ध नहीं है। जंगली जानवरों, आग, ठंड़ के कारण हुई फसलों के क्षति व्यक्तिगत स्तर पर भी लागू की जाए।
- विश्व व्यापार संगठन में किसानों के हितो से न समझौता न किया जाये :- कृषि को विश्व व्यापार संगठन से बाहर किया जाए व देश में सभी कृषि आयात पर रोक लगायी जाए। कृषि आयात से किसानों की आजीविका प्रभावित हो रही हैं, देश में किसानों की आत्महत्या भी विकराल रूप धारण कर रही हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 से भी स्पष्ट है कि भारत आयात का हब बन रहा है और निर्यात में लगातार गिरावट आ रही है। हमारी मांग है कि विश्व व्यापार संगठन से कृषि पर समझौता समाप्त किया जाए व देश में सभी कृषि आयात पर रोक लगायी जाए।
- कृषि व्यापार में मुक्त व्यापार समझौते के तहत उदारीकरण नहीं किया जाये- कनाडा, आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड के साथ चल रही मुक्त व्यापार समझौता वार्ता के तहत कृषि व्यापार में और भी उदारीकरण किया गया तो भारतीय कृषि पर गम्भीर प्रभाव पडेगा। अगर हमने रियायती उत्पादों जैसे ऑस्ट्रेलिया के गेहूँ न्यूजीलैंड के डेयरी उत्पादों और कनाडा के खाद्य तेलो, दालो के आयात के लिए हमारे बाजारों को खोल दिया तो उससे भारत के किसानों की आजीविका पूरी तरह से प्रभावित होगी, क्योंकि यह तीनों देश इन फसलों के मुख्य निर्यातक माने जाते हैं। इन देशों को भारत जैसे बडे बाजार की आवश्यकता है। भाकियू मांग करती है कि कृषि क्षेत्र में चल रही सभी मुक्त समझौता वार्ताओं को तुरंत बंद किया जाये।
14. खेती किसानी के मुद्दे पर संसद पर चर्चा हेतु विशेष सत्रः- देश का कृषि संकट गहराता जा रहा है। जिससे बहुत बड़ी मात्रा में छोटे मझौले किसान खेती छोड़कर मजदूर बनते जा रहे हैं। कृषि क्षेत्र के संकट के समाधान हेतु खेती पर संसद में विशेष सत्र बुलाया जाए।
उपरोक्त सभी मुद्दों को लेकर भारतीय किसान यूनियन द्वारा 13 मार्च 2018 को दिल्ली के संसद मार्ग पर किसान महापंचायत का आयोजन किया जायेगा। जिसमें देश के सभी राज्यों के किसान भाग लेंगे।
—————————————————————————————————————————————–