अरुण पाण्डेय
नई दिल्ली | 07 मई 2017
ऑर्गेनिक उपज वाकई ऑर्गेनिक है, इसके लिए इस बात का प्रमाणपत्र होना जरूरी है कि उत्पाद या फसल पूरी तरह ऑर्गेनिक तौर तरीकों से उगाई गई है। ऐसे में ऑर्गेनिक खेती करने वालों के मन में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि ऑर्गेनिक प्रणामपत्र या सर्टिफिकेट मिलेगा कैसे?
ये जान लीजिए प्रामाणिकता के लोगों के बगैर बाजार में आपका प्रोडक्ट कोई नहीं खरीदेगा। यह साबित करना मुश्किल होगा कि आपकी फसल जैविक है? ग्राहक को बिना प्रमाणपत्र भरोसा नहीं होगा, ना ही वो इस बात पर यकीन करेगा कि आपका प्रोडक्ट सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है।
हर स्तर पर निगरानी जरूरी
जैविक खेती का प्रमाणपत्र लेने से पहले सबसे अहम बात ध्यान रखें कि आपको मिट्टी, खाद, बीज, बुआई, सिंचाई, कीटनाशन, कटाई, पैकिंग और यहां तक कि स्टोरेज तक सभी प्रक्रिया जैविक ही रखनी हैं ।
दूसरी सबसे जरूरी बात कि आपको इन सभी प्रक्रियाओं का पूरा रिकॉर्ड अपने पास रखना जरूरी है। प्रमाणपत्र के वक्त आपके सारे रिकॉर्ड चेक किए जाएंगे। सभी स्तर पर जैविक होने के बाद ही इसका सर्टिफिकेट दिया जाता है।
प्रमाणपत्र साबित करेगा कि आपकी हर प्रक्रिया पूरी तरह जैविक रही है। इसके बाद ही उपभोक्ता या खरीदार को यकीन होगा कि वो जो प्रोडक्ट खरीद रहा है वो पूरी तरह ऑर्गेनिक है। लेकिन घबराने की जरूरत नहीं, ये सभी प्रक्रियाएं सुनने में मुश्किल लग रही हों, पर इतनी जटिल भी नहीं हैं। अब अपनी फसल के लिए आर्गेनिक प्रमाण-पत्र हासिल करना बिलकुल कठिन नहीं है।
चलिए आपको बताते हैं कि आप अपनी फसल, सब्जी, डेयरी प्रोडक्ट या फल के लिए जैविक प्रमाणपत्र कैसे हासिल करें?
आर्गेनिक प्रमाण-पत्र
आर्गेनिक प्रमाण-पत्र के लिए आवेदन
केंद्र सरकार की कृषि और खाद्य प्रसंस्करण एक्सपोर्ट विकास अथॉरिटी यानी एपीडा के राष्ट्रीय आर्गेनिक उत्पादन प्रोग्राम में मान्यता प्राप्त किसी भी संस्था से फसल के प्रमाणीकरण सर्टिफिकेट लिया जा सकता है। इसके लिए निर्धारित फीस देनी होगी।
फसल को ऑर्गेनिक होने का प्रमाणपत्र के लिए पहले एप्लीकेशन देनी होती है। एपीडा से मान्यता प्राप्त संस्थाएं अकेले या समूह में किसानों की फसलों को ऑर्गेनिक होने का सर्टिफिकेट देती हैं।
ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट देने वाली एजेंसियां
प्रमाण पत्र हासिल करने की 4 प्रक्रिया
इसका मतलब है कि आप जिस फसल के लिए ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट चाहते हैं, संबंधित संस्था सर्टिफिकेट देने में सक्षम है भी या नहीं। संस्था सरकार की तरफ से जैविक खेती के लिए तय किए गए सभी पैमानों के मुताबिक सर्टिफिकेट देती है या नहीं।
यह जरूर पता लगा लें कि सर्टिफिकेट देने वाली संस्था को भारत के साथ साथ विदेशों में भी मान्यता है भी या नहीं।
फसलों को जैविक साबित करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पैमानों पर खरा उतरा जरूरी है। इनका सीधा संबंध फसल की क्वालिटी से नहीं है। अगर शुरू से स्टैंडर्ड बनाकर रखे जाएंगे तो आपको किसी भी स्तर पर दिक्कत नहीं होगी
जहां फसल उगाई जा रही है वहां तमाम बातों का हर स्तर पर रिकॉर्ड होना जरूरी है। मौके पर भी एजेंसियां जाकर जांच कर सकती हैं। फसल उगाना ही पर्याप्त नहीं, इसकी कटाई, प्रोसेसिंग और संरक्षण तभी में ऑर्गेनिक तरीके होने जरूरी हैं।
सभी स्तरों पर खरा उतरने के बाद एजेंसियां फसल के ऑर्गेनिक होने का प्रमाणपत्र जारी करती हैं।
प्रमाणपत्र में इन बातों का ध्यान रखें
बीज
अगर आपके पास ऑर्गेनिक बीज उपलब्ध है तो उसी से खेती शुरू करें। लेकिन अगर ऑर्गेनिक बीज नहीं है तो पहली बार दूसरे बीजों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। हालांकि देश में कई बीज बैंक हैं जो देसी बीज बेचते हैं। ध्यान रखें ऑर्गेनिक खेती के लिए जीएम बीज, जींस बदले हुए बीज या फिर ट्रांसजेनेटिक बीजों की सख्त मनाही है।
फर्टिलाइजर या उर्वरक
फसल के दौरान किसी भी वक्त रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल कतई ना करें। सिर्फ जैविक उर्वरक का इस्तेमाल करें। इसमें नष्ट होने वाले पदार्थ, गोबर गैस, पत्तों और फूलों से बनाई गई खाद या फिर फॉस्फेट, जिप्सम, लाइम वगैरह का इस्तेमाल किया जा सकता है।
कीटनाशक
ध्यान रहे अगर फसल में रोग होते हैं तब भी सिर्फ जैविक तरीके से तैयार कीटनाशकों का ही इस्तेमाल करें। जैविक फसल के लिए दवा का छिड़काव फुहार के जरिए करें। रासायनिक कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करें।
मिट्टी और जल संरक्षण
ऑर्गेनिक फसल उगाने वाली जमीन पर कचरे को जलाना या फिर खरपतवार नाशक का इस्तेमाल मना है।
प्रमाण पत्र के लिए फीस
हर एजेंसी की फीस अलग अलग है। सभी एजेंसिया हर स्तर के लिए अलग से फीस लेती हैं।
इसमें टैक्स शामिल नहीं है।
विदेशी एजेंसियों के मुकाबले भारतीय एजेंसियों की फीस करीब करीब आधी है। आप चाहें तो भारतीय एजेंसियों से भी प्रमाणपत्र ले सकते हैं क्योंकि यह भी मान्यता प्राप्त हैं।
राष्ट्रीय जैविक उत्पाद कार्यक्रम (NPOP)
भारत सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए यह कार्यक्रम शुरू किया है। इसके जरिए देश के किसोनों की फसलों का जैविक प्रमाणीकरण आसानी से किया जाता है। इस तरह की जैविक फसलों को यूरोपीय देशों और स्विटजरलैंड ने भी मान्यता दे रखी है। भारतीय जैविक फसलों और अमेरिकी जैविक फसलों का स्टैंडर्ड एक ही माना गया है। भारत में उगाई गई जैविक फसलों को पूरी दुनिया में मान्यता है और भारतीय किसान दुनिया में कहीं भी अपनी उपज बेच सकता है। जैविक फसलों के दाम सामान्य फसलों के मुकाबले तीन से चार गुना तक अधिक होते हैं। यूरोप और अमेरिका में इस तरफ की फसल का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है। भारत में भी जैविक प्रोडक्ट की मांग में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
जैविक खेती यानी फायदे का उपज
परंपरागत तौर पर भारतीय फसलें पहले जैविक तरीकों से ही उगाई जाती थीं। खासतौर पर गोबर, गोमूत्र, पत्ते की पौष्टिक खाद बनाने का प्रचलन काफी पुराना है। इससे जमीन की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है। हालांकि रासायनिक खाद के अंधाधुंध इस्तेमाल से इसमें बुरा असर पड़ा है।
——————————————————————————————————————————————————————————–