शक्ति शरण
लखनऊ के पार्थ सरावगी टोक्यो के एक रेस्टोरेंट में कॉफी पीने बैठे तो उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि चीनी का भी कोई विकल्प हो सकता है। डायबिटीज के मरीज पार्थ ने जब वेटर से कॉफी के लिए शुगरफ्री मांगी तो उसने टूटी फूटी अंग्रेजी में बताया कि उनके पास जो चीनी है वो डायबिटीज के मरीजों के लिए पूरी तरह सुरक्षित है। पहली बार जापान यात्रा पर गए पार्थ ने लिए यह बात एकदम अनूठी थी। पहले तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ, लेकिन रेस्टोरेंट के मैनेजर ने उन्हें बताया कि जीरो कैलोरी की इस शुगर का नाम है स्टेविया। भारत के बहुत से लोगों के लिए स्टेविया शुगर नई चीज होगी। लेकिन जापान और अमेरिका समेत दुनिया के 12 देशों में ये बड़ी तेजी से चीनी के विकल्प के तौर पर उभर रही है। कुछ दिन पहले तक शायद भरोसा करना मुश्किल था, पर जिस तेजी से स्टेविया पॉपुलर हो रही है उससे लगता है कि चीनी का रिप्लेसमेंट ज्यादा दूर नहीं है।
जापान में पॉपुलर स्टेविया शुगर
जापान में स्टेविया के इस्तेमाल को मंजूरी मिल चुकी है। जापान के लोग सेहत के लिए बहुत जागरूक होते हैं। इसलिए इस बात की गारंटी है कि उन्होंने पूरी तरह ठोक बजाकर सभी पहलुओं पर गौर करने पर बाद ही स्टेविया को अपनाया होगा। इस वक्त जापान के आधे मार्केट यानी करीब 45 परसेंट में स्टेविया चीनी का कब्जा है।
इसी तरह अमेरिकी फूड एडमिनिस्ट्रेशन ने भी स्टेविया के इस्तेमाल को कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दे दी है। अब तक करीब 12 देशों में स्टेविया के इस्तेमाल को हरी झंडी मिल चुकी है। हालांकि अभी स्टेविया शुगर को बहुत लंबा सफर तय करना है। दुनिया के 120 देशों में चीनी का प्रोडक्शन होता है, जिसमें 70 परसेंट में गन्ना और 30 परसेंट में चुकंदर से चीनी तैयार होती है। लेकिन गन्ने से बनी चीनी में कार्बोहाइड्रेट बहुत ज्यादा मात्रा में होते हैं इसलिए डायबिटीज के मरीजों के लिए ये नुकसानदेह मानी जाती है। वजन कंट्रोल करने में लगे लोगों को लिए भी परंपरागत चीनी का इस्तेमाल वर्जित किया जाता है।
यही वजह है कि जिन देशों में स्टेविया शुगर को मान्यता मिली है वहां वह तेजी से पॉपुलर हो रही है और यही रफ्तार रही तो दो-चार साल में भारत में भी स्टेविया का इस्तेमाल शुरू करने के लिए दबाव बनने लगेगा।
कैसे तैयार होती है स्टेविया शुगर
स्टेविया हरे रंग का तुलसी की तरह का एक पौधा होता है। सबसे पहले इस पौधे की खोज दक्षिण अमेरिका में की गई थी। स्टेविया पौधे की पत्तियां बहुत मीठी होती हैं। इससे जो चीनी बनती है वो 100 परसेंट आर्गेनिक होती है। इसमें जीरो परसेंट कैलोरी होती है। स्टेविया शुगर के लिए बड़े प्लांट की भी जरूरत नहीं होती। इसके लिए छोटा सा प्लांट ही पर्याप्त होता है। इसमें स्टेविया के पत्तों को सुखाकर उससे चीनी निकाली जाती है।
स्टेविया फसल का साइकिल
स्टेविया तुलसी की तरह पौधा है, एक बार लगाने के बाद 6 बार उसकी फसल ले सकते हैं। स्टेविया की एक फसल को तैयार होने में करीब साढ़े चार महीने का वक्त लगता है। यानी एक साल में दो बार फसल ली जा सकती है। जबकि गन्ने के लिए फसल तैयार होने में 18 महीने का वक्त लगता है। इस तरह जितने दिनों में गन्ने की एक फसल तैयार होती है उतने दिनों में स्टेविया की 4 फसल ली जा सकती हैं। एक बार में स्टेविया का पौधा 6 फसलें देता है।
भारत में संभावना
भारत में स्टेविया के तौर पर चीनी का रिप्लेसमेंट बड़ी हलचल मचा सकता है। इसकी वजह साफ है देश के बहुत बड़े इलाके में गन्ना किसानों की आय का मुख्य साधन ही चीनी मिलें है। साथ ही अगर स्टेविया गन्ने का रिप्लेसमेंट बनी तो चीनी मिलों के भारी भरकम इन्वेस्टमेंट के लिए दिक्कत हो सकती है। स्टेविया के आने से भारतीय चीनी उद्योग में हलचल मच जाएगी। गन्ने के दाम कम हो जाएंगे। लेकिन स्टेविया के लिए मौजूदा प्लांट नहीं चलेंगे इसलिए नए प्लांट लगाने होंगे। ऐसे में शुगर इंडस्ट्री के अस्तित्व को ही खतरा हो सकता है। लेकिन इससे भी ज्यादा फिक्र की बात है कि भारतीय चीनी कंपनियां अभी इस विषय में ज्यादा सोच ही नहीं रही हैं
भारत में स्टेविया की स्थिति
भारत सरकार ने पहली बार 2015 में स्टेविया पर अध्ययन के लिए कमेटी बनाई है। इस कमेटी ने स्टेविया पौधे के प्लांटेशन को मंजूरी दे दी है। फिलहाल गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर स्टेविया प्लांटेशन शुरू भी हो गया है। हालांकि अभी तक स्टेविया से शुगर बनाने के कमर्शियल प्रोडक्शन को अभी मंजूरी नहीं मिली है। फिर भी पेप्सी ने प्रयोग के तौर पर सेवन अप सॉफ्ट ड्रिंक में स्टेविया शुगर का इस्तेमाल शुरू किया है। अभी स्टेविया सेवनअप ड्रिंक सिर्फ कुछ इलाकों में ही उपलब्ध है। उम्मीद की जा रही है कि अगर पेप्सी का प्रयोग सफल रहा तो दूसरी फूड और कोल्ड ड्रिंक कंपनियां इसका इस्तेमाल शुरू कर सकती हैं।
स्टेविया और चीनी: कौन बेहतर
केक, चॉकलेट या मिठाई खाने की किसकी इच्छा नहीं होती। पर मोटापे के डर से मनमर्जी के मुताबिक खा नहीं पाते। एक्स्ट्रा कैलोरी का डर, डायबिटीज के मरीजों को शुगर लेवल बढ़ने का डर पसंदीदा स्वाद लेने से रोक देता है। लेकिन दावा किया जा रहा है कि स्टेविया में ऐसा कोई खतरा नहीं होगा।
स्टेविया यानी जीरो कैलोरी
कम से कम शुगर की वजह से वजन बढ़ने का डर नहीं होगा। पेप्सी और कोकाकोला जैसी सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियों ने कुछ देशों में स्टेविया शुगर से बने ड्रिंक्स बेचने शुरू कर दिए हैं।
चीनी के मुकाबले स्टेविया 200 से 350 गुना ज्यादा मीठी होती है। यानी दो चम्मच चीनी की जगह सिर्फ दो बूंद स्टेविया ही काफी है। इसकी अत्यधिक मिठास ही एक बड़ी वजह है कि यह जीरो कैलोरी होती है। एक कप चाय या काफी के लिए सिर्फ दो बूंद स्टेविया डालने की जरूरत होगी।
जानकारों के मुताबिक स्टेविया की इसी सांद्रता की वजह से यह कैलोरी में बदलने से पहले ही पाचन तंत्र से बाहर आ जाती है। जबकि चीनी पाचन के दौरान खून में शामिल हो जाती है। ऐसे में चीनी का ज्यादा इस्तेमाल वजन बढ़ाता है। साथ ही डायबिटीज के मरीजों को चीनी पूरी तरह छोड़नी पड़ती है, और एक अहम स्वाद से उन्हें नाता तोड़ना पड़ता है। यही वजह है कि सेहतमंद लाइफ के लिए स्टेविया हर मामले में चीनी से बेहतर है।
स्टेविया के फायदे
- डायबिटीज के मरीजों के लिए 100 परसेंट सुरक्षित
- दुनिया के कई देशों में इस बारे में परीक्षण
- स्टेविया शुगर के इस्तेमाल से इंसुलिन लेने की जरूरत नहीं
- डायबिटीज के मरीज स्टेविया शुगर से बनी मिठाई खा सकते हैं।
- वजन कम करने के लिए मीठे से परहेज की जरूरत नहीं
- बहुत मीठा होने की वजह से थोड़ा इस्तेमाल ही काफी
भारत में इस वक्त डायबिटीज के करीब सात करोड़ मरीज हैं। देश में डायबिटीज के मरीजों में इतनी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है कि 15 साल में डायबिटीज के मरीज दोगुने हो गए हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक 2030 तक भारत में डायबिटीज के करीब आठ करोड़ मरीज होंगे। डायबिटीज रोगियों की इतनी तेजी से बढ़ती तादाद को देखते हुए जरूरी है कि सेहतमंद नुस्खे आजमाए जाएं। ऐसे में स्टेविया शुगर अहम साबित हो सकती है। इसलिए सरकार को चाहिए स्टेविया के परीक्षण में तेजी लाए, साथ ही गन्ना किसानों को कोई दिक्कत ना हो इसलिए उन्हें आय के दूसरे विकल्प देने पर भी गंभीरता से चर्चा की जानी चाहिए।
एक खास मुलाकात में मैक्स इंक के भारत हेड प्रकाश नाइकनावरे ने एग्रीनेशन के शक्ति शरण से बातचीत की… क्या चीनी की जगह लेगी स्टेविया? डायबिटीज के मरीजों को इंसुलिन लेने की झंझट नहीं, मिठाई खाने का टेंशन नहीं और चाय का चस्का छोड़ने की जरूरत नहीं। क्या चीनी का ज्यादा सेहतमंद विकल्प तैयार हो गया है? कैसे चीनी उद्योग और गन्ना किसानों के लिए बड़ी चुनौती सामने आ गई है। इस पर एग्रीनेशन के कंसल्टिंग एडिटर शक्तिशरण सिंह ने शुगर मैक्स इंक के कंट्री हेड प्रकाश नाइकनावरे से बात की प्रकाश जी क्या ये मुमकिन है कि स्टेविया से डायबिटीज के मरीज को मिठाई खाने और चाय पीने का छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी? जी हां स्टेविया शुगर से ये निश्चित तौर पर मुमकिन है। सबसे खास बात यही है कि स्टेविया डायबिटीज के मरीजों के लिए पूरी तरह सुरक्षित है। दुनिया के कई देशों में इस बारे में परीक्षण हो चुके हैं कि स्टेविया शुगर के इस्तेमाल से इंसुलिन लेने की जरूरत नहीं होगी। डायबिटीज के मरीज तो स्टेविया शुगर से बनी मिठाई भी खा सकते हैं। दुनिया में किन किन देशों में इसके इस्तेमाल को मंजूरी मिल चुकी है? दुनिया के 12 देशों में स्टेविया का इस्तेमाल शुरू भी हो गया है। अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यानी एफडीए आमतौर पर क्वालिटी और सेहत से जुड़े प्रोडक्ट को लेकर बहुत सख्त है, लेकिन उसने भी इसे सेहत के लिए फायदेमंद पाया है। सबसे ज्यादा किस देश में इस्तेमाल हो रही है स्टेविया? जापान में मंजूरी मिलना स्टेविया के लिए टर्निंग प्वाइंट है। इसकी वजह है कि जापान में सेहत के प्रति बेहद जागरुक होते हैं। वहां इसका इस्तेमाल 45 परसेंट हो गया है और यही रफ्तार रही तो जल्द ही स्टेविया चीनी से आगे निकल जाएगी। भारत में क्या स्कोप देखते हैं? भारत सरकार ने नवंबर 2015 में स्टेविया के परीक्षण को मंजूरी दी है। और गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर प्लांटेशन शुरू भी हो गया है। दुनिया में जिस तेजी से स्टेविया पॉपुलर हो रही है उससे लगता है कि अगले दो-तीन साल में भारत में भी इसका इस्तेमाल शुरू हो जाएगा। स्टेविया पौधे के बारे में बताइए, इसकी फसल कितने दिनों में तैयार होती है? स्टेविया तुलसी की तरह एक पौधा है, जिसकी हर पत्ती मीठी होती है। इससे बनी चीनी 100 परसेंट आर्गेनिक होती है। इसमें जीरो परसेंट कैलोरी होती है। एक बार लगाने के बाद 6 बार उसकी फसल ले सकते हैं। स्टेविया की एक फसल 4.5 माह में ले सकते हैं। यानी 9 माह में दो फसल। जबकि गन्ने की एक फसल के लिए 18 माह लगते हैं। स्टेविया के भारत आने से मौजूदा चीनी उद्योग में किस तरह का असर होगा? स्टेविया शुगर से भारतीय चीनी उद्योग में हलचल होना तय है। लेकिन इससे भी बड़ी फिक्र की बात है कि भारतीय चीनी कंपनियां अभी इस विषय में सोच नहीं रही हैं | इसका दूसरा असर होगा कि किसानों को अपना फसल का पैटर्न बदलना पड़ सकता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल होगा कि चीनी की मौजूदा मिलों और उन पर हुए भारी भरकम निवेश का क्या होगा ? गन्ना किसानों का क्या होगा ? क्या कोई कंपनी स्टेविया का इस्तेमाल कर रही है, भारत में कितनी गुंजाइश है इसकी सफलता की? पेप्सी ने टेस्ट के तौर पर अपना 7 अप स्टेविया शुगर के साथ बेचना शुरू कर दिया है। इसके परिणाम देखकर और कई फूड कंपनियां इस्तेमाल शुरू कर सकती हैं। दुनिया के कई देशों में स्टेविया शुगर काउंटर पर बिकती है और बहुत पॉपुलर है। इसलिए भारत में स्टेविया की ग्रोथ की भारी गुंजाइश है। भारत में एक बार स्टेविया आ गई तो उसे बाजार में छा जाने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा |
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