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बीमारी- 1 पपीते का वलय-चित्ती या रिंग स्पॉट
पपीते के वलय-चित्ती रोग को कई नामों से जाना जाता है। जैसे पपीते की मोजेक, विकृति मोजेक, वलय-चित्ती (पपाया रिंग स्पॉट)। इसमें पत्तियां सकरी और पतली हो जाती है।
कब होता है रिंग स्पॉट
पपीते में ये रोग किसी भी वक्त लग सकता है। लेकिन एक वर्ष पुराने पौधे पर रोग लगने की आशंका ज्यादा होती है।
पपीता रिंग स्पॉट के लक्षण
- सबसे ऊपर की मुलायम पत्तियों पर सबसे ज्यादा असर
- रोग से ग्रस्त पत्तियां चितकबरी और छोटी हो जाती हैं
- पत्तियों की सतह खुरदरी, उन पर गहरे हरे रंग के फफोले हो जाते हैं
- पत्तियों को चौड़ाई छोटी हो जाती है, पेड़ के ऊपर की पत्तियाँ खड़ी होती हैं।
- नयी पत्तियों पर पीला मोजेक तथा गहरे हरे रंग के धब्बे हो जाते हैं
- पतियों में नीचे की तरफ ऐंठन, आकार धागे जैसा
- फलों पर गोल पानी जैसे धब्बे हो जाते हैं, फल पकने पर भूरे रंग के हो जाते है।
- रोग की वजह से पौधों में लैटेक्स तथा शुगर की मात्रा स्वस्थ्य पौधों के मुकाबले कम हो जाती है
पपीता में रिंग स्पॉट की वजह
जिस विषाणु से यह रोग होता है उसे वलय चित्ती विषाणु कहते हैं। यह विषाणु पपीते के पौधों और दूसरे पौधों के जरिए आता है। बीमार पौधों से स्वस्थ पौधों में तेजी से फैलता है। इसके अलावा फैलाव, अमरबेल और पक्षियों के जरिए होता है।
बीमारी- 2 पर्ण-कुंचन
लक्षण
- पत्तियां छोटी और झुर्ऱीदार हो जाती हैं।
- पत्तियों में विकृति और इनकी शिराओं का रंग पीला पड़ जाता है।
- रोगी पत्तियाँ नीचे मुड़ जाती हैं, एक तरह से उल्टी प्लेट जैसी दिखती हैं
- पत्तियां मोटी खुरदरी और मोड़ने पर बिखरने लगती हैं
- बीमार पौधों में फूल कम आते हैं। पतियाँ गिरने लगती हैं और पौधे की बढ़ोतरी रुक जाती है
पर्ण कुंचन रोग के कारण
विषाणु के कारण होता है। एक पपीते का पेड़ कई फसल देता है, इसलिए लंबे वक्त तक विषाणु पेड़ पर बने रहते हैं। बगीचों में इसका फैलाव सफेद मक्खी बेमिसिया टैबेकाई के जरिए होता है। यह मक्खी रोगी पत्तियों से रस चूसते वक्त विषाणु को भी ग्रहण कर लेती है और स्वस्थ्य पत्तियों को संक्रमित कर देती है।
बीमारी- 3 मंद मोजेक
लक्षण
इसके ज्यादातर लक्षण रिंग स्पॉट यानी वलय चित्ती से मिलते जुलते हैं। बस फर्क यह है कि इसमें पतियाँ ज्यादा विकृत नहीं होती। रोग का फैलाव कीट माहूं की वजह से होता है।
बीमारी से कैसे निपटें
इस बीमारी से निपटने का अभी तक कोई तरीका सामने नहीं आया है। लेकिन कुछ उपाय करके इसकी तीव्रता को काफी कम किया जा सकता है।
- बागों की लगातार सफाई करें और रोगी पौधों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें
- नये बाग लगाने के लिए स्वस्थ्य तथा रोगरहित पौधे ही चुनें
- रोगग्रस्त पौधे किसी भी उपचार से ठीक नहीं हो सकते इसलिए इनको उखाड़कर जला दें
- कीटों की रोकथाम के लिए कीटनाशक दवा ऑक्सीमेथिल ओ. डिमेटान (मेटासिस्टॉक्स) 2% घोल 10-12 दिन के अंतर पर छिड़काव करें
बीमारी- 4 तने का रोग
लक्षण
- पौधे के जमीन के पास वाले हिस्से में पानी के दाम की तरह घेरा बनना
- धीरे धीरे तने के चारों ओर श्रृंखला की तरह फैल जाते हैं।
- ऊपर की पत्तियां मुर्झा जाती हैं, उनका रंग पीला पड़ जाता है और गिरने लगती हैं।
- इस रोग से पीड़ित पौधों में फल नहीं लगते अगर फल आ भी गए तो भी पकने से पहले गिर जाते हैं।
- तना कमजोर होने से पूरा पेड़ जमीन पर टूटकर गिर जाता है। ये बीमारी दो से तीन साल पुराने पेड़ों में ज्यादा होती है। लेकिन नए पौधों में भी बीमारी फैल जाती है।
रोग के कारण
यह रोग पिथियम कीट की वजह से होता है। ये मुख्य रूप से मिट्टी में ही पाये जाते हैं।
रोग का उपचार
- पपीते के बगीचों में जल-निकास का उचित प्रबंध करें
- बगीचों में पानी अधिक समय तक न रूका रहे
- रोगी पौधों को जल्दी से जल्दी जड़ समेत उखाड़ कर जला दें
- जहां से पौधे उखाड़े गये हों, उसी जगह पर दूसरे पौधे कतई ना लगाएं
- आधार से 60 सेमी ऊंचाई तक तनों पर बोडों पेस्ट (1:13) लगा दें
- भूमि सतह के पास तने के चारों तरफ बोडों मिश्रण (6:6:50) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (3 प्रतिशत), टाप्सीन-एम (0.1 प्रतिशत), का छिड़काव कम से कम तीन बार करें, खासतौर पर जून-जुलाई और अगस्त में
इसके अलावा पपीता को निरोगी रखने के लिए नीचे बताए गए जरूरी उपाय जरूर करें
- पौधशाला की क्यारी भूमि सतह से कुछ ऊपर उठी हो
- बालुई मिट्टी हो, अगर मिट्टी कुछ भारी हो तो उसमें बालू या लकड़ी का बुरादा मिलाएं
- पानी निकलने का सही इंतजाम हो पौधशाला में देर तक पानी जमा ना रहे
- बीजों की घनी बोआई नहीं करनी चाहिए।
पपीता के पत्तों में रोग
- सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती (लीफ स्पॉट)
लक्षण
- दिसम्बर-जनवरी में पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के दाग आते हैं। दाग का बीच का भाग मटमैला होता है। जबकि पत्तियां पीली पड़कर गिर जाती है।
- शुरुआत छोटे दागों से होती है जो धीरे-धीरे बढ़कर बड़े हो जाते हैं।
- फल खराब हो जाता है और बेचने लायक नहीं रहता
- पके फलों में रोग के लक्षण ज्यादा दिखाई देते हैं
रोग के कारण
सर्कोस्पोरा पपायी फफूंद से होता है। बारिश में ज्यादा फैलाव होता है। रोग का फैलाव कीट और हवा से होता है।
रोग का उपचार
- रोगी पौधों के गिरे कचरे को नष्ट कर दें
- फफूंद नाशक दवा जैसे, टाप्सीन एम 1 प्रतिशत, मैंकोजेब, 0.2 से 0.25 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करें
- यह छिड़काव 15-20 दिन के अंतराल दोहराएं
- हेल्मिन्थोस्पोरियम पर्ण-चित्ती
लक्षण
- पत्तियों पर पानी जैसे दाग और धब्बे
- पत्तियां बहुत मुलायम होकर नीचे गिर जाती हैं
- इससे निपटने का तरीका सर्कोस्पोरा फफूंद की तरह है
पपीते को रोग से बचाने के लिए जरूरी है कि समय समय पर पूरे बगीचे की लगातार निगरानी की जाए और किसी भी रोग का लक्षण दिखते ही उससे निपटने के उपाय किए जाएं।
पपीता कैश की फसल है, इसकी मांग कभी कम नहीं होती। इसलिए जरूरी है कि इसकी फसल पर हमेशा नजर रखें, ताकि भरपूर फायदा हो।
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