राजेश द्वेदी
भोपाल | 22 अगस्त 2017
कीटनाशक खरीद पर मध्यप्रदेश की नई नीति सवालों के घेरे में है। दरअसल इस साल कीटनाशक खरीद के टेंडर में मध्यप्रदेश मार्केटिंग फेडरेशन यानी मार्कफेड के नए नियम पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। छोटी कीटनाशक कंपनियों का दावा है कि नए नियम सिर्फ राज्य की बहुत सी छोटी और मझौली कीटनाशक कंपनियां को मार्कफेड के टेंडर से बाहर करने के लिए ही बनाए गए। नय नियमों से आरोप ये लग रहा है कि कहीं कुछ चुनिंदा कंपनियों को ही फायदा पहुंचाने की तैयारी चल रही है?
क्या है पूरा मामला
दूसरे राज्यों की तरह मध्यप्रदेश की मार्कफेड का भी काम किसानों तक सही कीमत पर कीटनाशक मुहैया कराना होता है। सालाना करीब 100 करोड़ रुपए की कीटनाशक और न्यूट्रिएंट्स सप्लाई के लिए हर साल इसके लिए तमाम कंपनियों से टेंडर मंगाए जाते हैं, जिसके बाद मार्कफेड की कमेटी सप्लाई करने वाली कंपनियों के लिए रेट लिस्ट तय करती है। इसी लिस्ट के हिसाब से हर जिले का कृषि निदेशक जरूरत के हिसाब से उन्हीं कंपनियों से कीटनाशक खरीदता है जिन्हें मार्कफेड ने शॉर्टलिस्ट किया होता है।
मार्कफेड की प्रक्रिया सवालों के घेरे में
मार्केटिंग फेडरेशन ने अचानक इस बार टेंडर के नियम बदल दिए। इसमें कई ऐसी शर्तें लगा दी गई जिनसे 80 परसेंट से ज्यादा कंपनियां सप्लाई की दौड़ से बाहर हो गई।
कई छोटी कंपनियों ने आरोप लगाया है कि जानबूझकर ऐसे नियम बनाए गए जिससे वो टेंडर प्रक्रिया से बाहर हो जाएं और कुछ चुनिंदा कंपनियों को फायदा मिले। टेंडर की शर्ते और पुराने नियमों को देखें तो इस साल के नियम संदेह तो पैदा करते ही हैं।
छोटी कंपनियों का आरोप टेंडर में मनमानी शर्तें
इस मामले में एग्रीनेशन ने मध्यप्रदेश के कृषि विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा से कई बार फोन और व्हाट्स एप के जरिए बात करने की कोशिश की लेकिन उनका कोई जबाव नहीं मिला।
छोटी कंपनियों का कहना है कि मध्यप्रदेश सरकार ने फैसला नहीं बदला तो राज्य में कई छोटी कीटनाशक इकाइंयों के बंद होने की नौबत आ सकती है। नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर भोपाल और इंदौर की कुछ छोटी कंपनियों ने बताया कि उनका बिजनेस काफी हद तक मार्कफेड के सप्लाई ऑर्डर पर निर्भर रहता है। लेकिन अगर उन्हें मार्कफेड का बिजनेस नहीं मिला तो इंडस्ट्री चलाना मुश्किल होगा।
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