योगेंद्र यादव के मुताबिक इस साल के केंद्रीय बजट में पहली बार एमएसपी की चर्चा हुई. वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि उन्हें मालूम है कि किसानों को उनकी फसल की एमएसपी नहीं मिल रही है.
वित्तमंत्री ने वादा किया था कि वो नीति आयोग को इसमें शामिल करते इस बात की पक्की व्यवस्था करेंगे कि एमएसपी नहीं देने की गतिविधियों पर रोक लग सके. उनके एमएसपी सत्याग्रह का मकसद यही देखना है कि वित्तमंत्री के वादों पर वाकई में अमल हुआ भी है या नहीं.
हर फसल के दाम एमएसपी से नीचे
स्वराज अभियान के नेता के मुताबिक फसल की एमएसपी बढ़ाने को लेकर बहस हो सकती है पर मौजूदा हालात में कॉटन को छोड़कर किसानों को हर फसल के दाम एमएसपी से बहुत कम मिल रहे हैं. योगेंद्र यादव का कहना है कि इसे बढ़ाने की बात तो एक तरफ अभी मौजूदा एमएसपी के दाम मिल जाएं यही बहुत है.
योगेंद्र यादव का दावा है कि पांच राज्यों की 9 मंडियों पर फसलों की कीमत परेशान करने वाली है क्योंकि कहीं भी किसानों की पूरी फसल एमएसपी पर नहीं बिक रही है.
एमएसपी से कम दाम, किसानों को नुकसान
फसल – चना
- एमएसपी- 4400 रुपए क्विंटल
- औसत प्राइस- 3750 रुपए क्विंटल
- किसान को नुकसान- 650 रुपए क्विंटल
फसल- सरसों
- एमएसपी- 4000 रुपए क्विंटल
- औसत प्राइस- 3515 रुपए क्विंटल
- किसान को नुकसान- 485 रुपए क्विंटल
फसल- मसूर
- एमएसपी- 4250 रुपए क्विंटल
- औसत प्राइस- 3749 रुपए क्विंटल
- किसान को नुकसान- 501 रुपए क्विंटल
फसल- मक्का
- एमएसपी- 1425 रुपए क्विंटल
- औसत प्राइस- 1159 रुपए क्विंटल
- किसान को नुकसान- 266 रुपए क्विंटल
(सोर्स-5 राज्यों की मंडी से एग्रीमार्कनेट की कीमतें)
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के ऐलान का सच
यादव ने बताया कि मध्यप्रदेश में किसानों की दिक्कतें कम नहीं हुई हैं. जबकि जून 2017 में मंदसौर में किसानों के आंदोलन में 6 किसानों की मौत के बाद राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने अनशन किया था. मुख्यमंत्री ने उस वक्त ऐलान किया था कि किसी भी फसल को एमएसपी से नीचे खरीदना अपराध माना जाएगा.
मुख्यमंत्री के दावे की जमीनी हकीकत ये है कि मक्के का एमएसपी 1425 रुपए क्विंटल तय किया गया है, लेकिन ये पूरे राज्य में 600 से 800 रुपए क्विंटल में ही बिक रहा है. हद तो ये है कि इस अपराध पर कहीं भी कोई केस दर्ज नहीं किया गया है.
नेशनल एलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट के संयोजक डॉक्टर सुनीलम के मुताबिक सरकार ने मक्के पर सिर्फ 200 रुपए क्विंटल बोनस दिया है. सरकार ने प्रति हेक्टेयर 1954 किलो मक्के की फसल का अनुमान लगाया था जबकि वास्तविक प्रोडक्शन 6000 किलो प्रति हेक्टेयर हुआ है. इसका मतलब है कि तीन चौधाई फसल की किस्मत ट्रेडर के रहमोकरम पर निर्भर है. यही हाल सरसों, लहसुन, चना की फसलों का है.
सुनीलम के मुताबिक एक और बहुत बड़ा मुद्दा ये है कि किसान जब फसल बेचने जाता है तो अथॉरिटीज पुराने लोन के एवज में पैसा काट लेता है. उनके मुताबिक ये पूरी तरह अवैध है फिर भी पूरे मध्यप्रदेश में यही चल रहा है.