क्या आप जानते हैं सैनिकों की जरूरत के मुताबिक उनके लिए खाद्य सामग्री तैयार करने के लिए बाकायदा एक अत्याधुनिक लैब है। जिसमें सैनिकों को पौष्टिक खाने मिले इस पर नई नई रिसर्च होती हैं। डीएफआरएल यानी डिफेंस फोर्सेस रिसर्च लैब कर्नाटक के मैसूर में है। डीएफआरएल सिर्फ सेना ही नहीं देश में पैकेज्ड फूड इंडस्ट्री को नई नई टेक्नोलॉजी दे रही है, जिससे कि खाने-पीने की चीजों को लंबे वक्त तक रखा जा सके और उनमें पौष्टिकता और स्वाद पर भी असर ना हो। एग्रीनेशन के कंसल्टिंग एडिटर शक्तिशरण सिंह ने इस लैब के डायरेक्टर राकेश कुमार शर्मा से खास बातचीत की।
राकेश कुमार जी, सबसे पहले बताइए डीएफआरएल क्या है?
डिफेंस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन के अंतर्गत बनी डिफेंस फूड रिसर्च लैब दिसंबर 1961 में मैसूर में स्थापित की गई थी। इसका मकसद सेना, नौसेना, वायुसेना और सुरक्षा बलों की खाने-पीने की जरूरतों और उनके ऑपरेशन के मुताबिक सर्वश्रेष्ठ खाद्य सामग्री तैयार करना था।
आखिर डीएफआरएल की जरूरत ही क्यों पड़ी
देखिए युद्ध की स्थिति में, या फिर कार्रवाई के दौरान सैनिकों को खास तरह के खान-पान की जरुरत होती है। अब सीमा पर कार्रवाई के दौरान सैनिकों को फ्रेश फूड तो मिल नहीं सकता। ऐसे हालात में खाना पकाना भी मुमकिन नहीं है और इतना वक्त उनके पास नहीं होता। इसलिए डीएफआरएल की स्थापना की गई कि सेना के तीनों अंगों, कमांडो, अर्द्धसैनिक बलों के लिए हल्का लेकिन ऊर्जा से भरपूर खाने की वैराइटी तैयारी की जाए। इन पैकेट के खाने को पकाने की जरूरत नहीं और सीधे खाया जा सकता है। साथ ही अलग अलग मौसम के हिसाब से अलग खाने की जरूरत होती है। ये पैकेट छै माह से एक साल तक सुरक्षित रहते हैं। यह एकमात्र लैब है जो सेनाओं के लिए रिसर्च में लगी है।
सेना, वायुसेना और नेवी के लिए किस तरह के खाने की जरूरत होती है
देखिए सेना बहुत ही मुश्किल हालात में काम करती है। जैसे राजस्थान के कुछ इलाकों में तापमान गर्मियों में 52 डिग्री तक चला जाता है। जबकि सियाचिन में सर्दियों में तापमान शून्य से 25 डिग्री नीचे तक चला जाता है। दोनों परिस्थितियों के लिए खाना पूरी तरह अलग तरह का होगा। इसी तरह नौसेना में सी-सिकनेस की वजह से अलग हालात बन जाते हैं। महीनों समंदर में रहने की वजह से नौसैनिकों में जरूरी मिनरल्स की कमी हो जाती है। इसी तरह परमाणु पनडुब्बी में तैनात नौसैनिकों के लिए खाना पूरी तरह अलग होगा क्योंकि उनमें रेडिएशन का खतरा होता है, इसलिए यहां ऐसा खाना दिया जाता है जो एंटी रेडिएशन, एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी हो।
किन किन बातों का ध्यान रखा जाता है?
मान लीजिए वायुसेना किसी अभियान में जा रही है, ऐसे में विमान में जगह कम होने की वजह से हल्का लेकिन काफी इनर्जी वाले खाना जरूरी है। साथ ही आपको पानी के लिए पाउच ले जाने होंगे। ये ध्यान रखना होता है कि अगर इमरजेंसी में पायलट को पैराशूट से नीचे उतरना पड़े तो उसके पास कम से कम 24 घंटे का राशन होना चाहिए। या मान लीजिए लंबी फ्लाइट में ऐसा खाना दिया जाता है जो हल्का हो, लेकिन पर्याप्त एनर्जी वाला हो। साथ ही हमें यह ध्यान भी रखना होता है कि भोजन ऐसा हो जिसमें बार बार टॉयलेट जाने की जरूरत ना पड़े। मतलब यह कि हम जरूरत के मुताबिक खाने पर जोर देते हैं।
भारतीय सेना के लिए आपके पास कितने प्रोडक्ट हैं?
देखिए मैं नंबर तो नहीं बता सकता। लेकिन सेना के हर अंग की जरूरत अलग अलग है। हम प्रोसेस्ड फूड को तरजीह देते हैं। साथ ही हम सेना को खाना की चीजें खरीदने में मदद करते हैं उनके लिए क्वालिटी तय करते हैं।
कैसे काम करती है यह लैब
लैब में बड़े पैमाने पर तकनीकी एक्सपर्ट और वैज्ञानिक खाने से जुड़ी तमाम बातों पर रिसर्च कर रहे हैं। जैसे खाने को लंबे समय तक सुरक्षित रखना, उनमें पौष्टिकता कैसे बनाए रखी जाए, प्रोसेस के नए नए तरीके ताकि खाना ना तो खराब हो, ना ही उसमें मौजूद विटामिन और मिनरल्स सुरक्षित रहें। सेनाओं को इस तरह का खाना दिया जाए कि उनका मनोबल हमेशा शिखर पर रहे और उन्हें पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा मिलती रहे।
किस तरह के खाने की वैराइटी पर काम किया गया है
हमने भारत के अलग अलग क्षेत्र की खान-पान की आदतों के मुताबिक व्यंजन तैयार किए हैं। डीएफआर के बहुत से प्रोडक्ट अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी से तैयार किए गए हैं। डीएफआरएल में तैयार टेक्नोलॉजी प्राइवेट कंपनियों को भी दी जा रही है। लैब में बहुत से ऐसे प्रोडक्ट बनाए गए हैं जो एक्सपोर्ट के लिए एकदम उपयुक्त हैं। कुल मिलाकर आप कह सकते हैं कि देश में पैकेज्ड फूड में रिसर्च के मामले में डीएफआरएल लीडर है। हमने प्रोडक्ट के डेवलमेंट में यह ध्यान रखा है कि भारतीय व्यंजन का स्वाद बना रहे।
सेनाओं के अलावा क्या आप लैब में विकसित की गई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल प्राइवेट कंपनियां भी कर सकती हैं?
हां बिलकुल लेकिन इसके लिए उन्हें टेक्नोलॉजी की फीस देनी होगी। हल्दीराम जैसी कई कंपनियां डीएफआरएल से टेक्नोलॉजी ले रही हैं। प्रोसेस्ड फूड में हमारी टेक्नोलॉजी शानदार और सस्ती है। मिसाल के तौर पर अगर आप किसी रेस्त्रां में दाल मखनी लेते हैं तो एक प्लेट की कीमत कम से कम 150 से 200 रुपए के आसपास होगी। लेकिन डीएफआरएल की लैब में विकसित दाल मखनी सिर्फ 70 रुपए में आ जाएगी। आप पैकेट खोलिए गर्म करें और दाल मखनी तैयार और इसका स्वाद रेस्त्रां की दाल मखनी जैसा ही होगा। हम लैब में लगातार टेक्नोलॉजी बेहतर करने में जुटे रहते हैं।
भारत में फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की क्या गुंजाइश देखते हैं
भारत में तो अभी प्रोसेस्ड फूड इंडस्ट्री की शुरुआत ही हुई है। इसमें सालाना 10 परसेंट ग्रोथ हो रही है। भारत प्रोसेस्ड फूड में दुनिया का हब बन सकता है। स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया आयोजनों से इसे और फायदा होगा। साथ ही सरकार ने प्रोसेस्ड फूड इंडस्ट्री को प्राथमिकता वाले सेक्टर का दर्जा दे रखा है। इसलिए विदेशी निवेश भी आ रहा है।
सेना के अलावा और कौन से संगठन आपसे टेक्नोलॉजी ले रहे हैं
रेलवे बड़े पैमाने पर हमारी लैब से टेक्नोलॉजी ले रहा है। रेलवे के लिए संख्या और गुणवत्ता दोनों जरूरी है। ताजे भोजन की जगह कोई नहीं ले सकता, लेकिन यात्रा के दौरान ताजा भोजन मुमकिन नहीं, इसलिए ध्यान रखना जरूरी कि प्रोसेस्ड फूड में कोई गड़बड़ी नहीं हो।
भारत की फूड इंडस्ट्री की मौजूदा स्थिति क्या है
अभी देश में सिर्फ 3 से 6 परसेंट ही प्रोसेसिंग हो रही है। जबकि फूड मंत्रालय का इसे 20 परसेंट तक पहुंचाने का लक्ष्य है। कई विकसित देशों में तो प्रोसेस्ड फूड इंडस्ट्री 80 से 90 परसेंट के स्तर पर है। थाईलैंड और फिलीपींस जैसे देशों में भारत से कई गुना ज्यादा फूड प्रोसेसिंग हो रही है।
अक्सर भारत में खाने की क्वालिटी को लेकर बहुत सवाल उठते हैं, आपका क्या मानना है?
भारत में खाने की क्वालिटी विकसित देशों के स्तर की है। टेक्नोलॉजी में कहीं कोई दिक्कत नहीं है।
आप किस तरह की टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं?
हम इस वक्त लो ग्लाईसेमिक चिकन पर काम कर रहे हैं। ताकि डायबिटीज के मरीज भी इसको शुगर बढ़ने की फिक्र के बगैर खाएं। इस चिकन में भरपूर प्रोटीन होगा, लेकिन शुगर बहुत कम होगी। इस चिकन को 6 माह तक सुरक्षित रखा जा सकेगा। हमने मैगी नूडल्स की तरह 1 मिनट उपमा तैयार किया है, जिसे आप एक मिनट में बना सकते हैं और इसके स्वाद में कोई फर्क नहीं होगा।