हर्षवर्धन त्रिपाठी
आंध्रप्रदेश की गुंटूर मंडी में मिर्च बेचने गए किसान की उपज वहां से करीब 2 हजार किलोमीटर दूर राजस्थान के गंगानगर का कारोबारी खरीदे और हफ्ते भर के अंदर सीधे किसान के बैंक खाते में पूरी रकम जमा। ई-मंडी का सिद्धांत कुछ ऐसा ही क्रांतिकारी है, जिसमें एग्रीकल्चर के लिए पूरा देश एक बड़ा बाजार हो जाएगा। बजट में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भरोसा दिया है कि नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट या e-NAM का दायरा मौजूदा 250 मंडी से बढ़ाकर देशभर में 585 मंडी तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे। हर ई-मंडी को 75 लाख रुपए भी मिलेंगे। इस रकम को मंडियां सफाई, ग्रेडिंग और पैकेजिंग में खर्च करेंगी। इस आइडिया के अमल में आने के बाद किसानों को औने-पौने दाम पर अपनी फसल बेचने की मजबूरी नहीं होगा। हालांकि लेकिन पिछले 9 महीने का अनुभव बताता है कि इसे अमल में लाना इतना आसान भी नहीं है।
ई-मंडी से किसानों को फायदा
e-NAM अमल में आ पाया तो किसानों को अपनी उपज की अच्छी कीमत मिलेगी। दलालों से छुटकारा मिलेगा। किसान e-NAM के जरिए सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को अपनी उपज बेचेगा। खरीदार राजस्थान का भी हो सकता है और आंध्र प्रदेश का भी। इससे सरकार का कैशलेस कारोबार का आइडिया भी अमल में आ पाएगा क्योंकि पूरी रकम सीधे किसान के खाते में जाएगी।
कैसे काम करेगा राष्ट्रीय कृषि बाजार
इस मामले में कर्नाटक सबसे आगे निकल गया है। राज्य में कुल 155 मंडियां और 354 उप मंडियां हैं जिनमें से अब तक करीब 100 मंडियों को ऑनलाइन जोड़कर एक प्लेटफॉर्म पर लाया जा चुका है। आम तौर पर ट्रेडर को हर मंडी में कारोबार के लिए अलग-अलग लाइसेंस लेना होता है, लेकिन कर्नाटक में कोई भी कारोबारी केवल एक लाइसेंस से ऑनलाइन जुड़ चुकी सभी 100 मंडियों में कारोबार कर सकता है। इतना ही नहीं, यहां राज्य सरकार ने गोदामों को भी उपमंडियों का दर्ज़ा दे दिया है, जिससे किसान अपने खेत के करीब के किसी भी गोदाम में अपनी उपज रख कर सीधे वहीं से उसे बेच सकता है। केंद्र सरकार की प्रस्तावित राष्ट्रीय कृषि बाजार एक बार लागू हो गई, तो किसान-कारोबारियों के लिए हर राज्य एक मंडी की तरह हो जाएगा। वैसे तो सभी मंडियों के ऑनलाइन जुड़ने से पूरे देश में किसान, कारोबारी कहीं से कहीं के लिए खरीद बिक्री कर सकता है। लेकिन उन्हें कुछ जरूरी मंजूरी और लाइसेंस लेने होंगे लेकिन इसके बाद फायदे ही फायदे।
ई-मंडी में कैसे होंगे सौदे
पूरी प्रक्रिया को कुछ इस तरह समझिए
- जैसे हुबली की एपीएमसी मंडी के गेट से जहां किसान अपना माल लेकर पहुंचता है। किसान बोरियों और हर बोरी के वजन के लिहाज से अपनी कुल कमोडिटी का एक अंदाजा लगाता है और उसी आधार पर गेट एंट्री की जाती है। लेकिन गेट एंट्री से पहले किसान का पंजीकरण ज़रूरी है। पंजीकरण के लिए तय कई दस्तावेजों में से किसी एक का होना ज़रूरी है। साथ ही बैंक में खाता होना ज़रूरी है। लेकिन, अगर किसी किसान के पास अभी तक बैंक खाता नहीं है, तो उसी समय मंडी के कर्मचारी बैंक के कर्मचारियों से बात करके किसान का बैंक खाता खुलवा देते हैं। एक बार पंजीकरण हो गया, तो उसे ये हमेशा काम आएगा।
- वन टाइम रजिस्ट्रेशन के बाद बारी आती है गेट एंट्री की। गेट एंट्री के लिए गेट पर बैठा डाटा ऑपरेटर बोरियों की संख्या, उपज का वजन और कमीशन एजेंट का नाम जैसी जानकारियां कम्प्यूटर में डालता है और फिर वहीं से किसान को अपने माल के लिए एक आईडी और एक लॉट नंबर मिल जाता है। अमूमन एक गुणवत्ता की सारी उपज एक लॉट में आती है और इसलिए एक किसान की उपज को कई लॉट नंबर मिल सकते हैं।
- इसके बाद इन सारे लॉट का सैंपल असेइंग लैब में जाता है और फिर लैब के परिणाम लॉट नंबर के सामने ऑनलाइन बिडिंग स्क्रीन पर आ जाता है। हालांकि यूएमपी की मंडियों में असेईंग, क्लीनिंग और ग्रेडिंग की सुविधा अभी पर्याप्त नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय ई-मार्केट्स सर्विसेज यानी आरईएमएस तेजी से इस दिशा में काम कर रहा है। अभी मंडियों में ग्रेडिंग और असेइंग की सुविधा कम होने से सारे लॉट के लिए ऐसा संभव नहीं होता। ऐसे में फिलहाल कमीशन एजेंट ही ज्यादातर लॉट की असेइंग कर अपने ट्रेडर को लॉट के भाव पर सलाह देते हैं और इस तरह ट्रेडर हर लॉट के हिसाब से अपना भाव कोट करता है और यह भाव किसान को एसएमएस के जरिए उसके मोबाइल पर भेज दिया जाता है।
- किसान का पंजीकरण हो गया। उसकी उपज की किस्म के लिहाज से उसे भाव पता चल गया। अलग-अलग कारोबारियों के भाव उसके पास आ गए। अब उसे तय करना है कि उसे अपनी उपज कहां बेचनी है। एक बार किसान का पंजीकरण हो गया। तो कर्नाटक के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़ी करीब सौ मंडियों में बैठा कारोबारी उस दिन ट्रेड के लिए मौजूद हर कमोडिटी की पूरी लिस्ट देख सकता है।
- इसके बाद वह अपनी रुचि की कोई एक कमोडिटी तयकर उस कमोडिटी के पेज को खोल सकता है। इसके लिए उसे ई-टेंडर पेज पर जाना होता है और उस लिंक को खोलना होता है, जहां उसे हर कमोडिटी का नाम, कमीशन एजेंट का नाम, लॉट नंबर और उसकी मात्रा मिल जाते हैं।
- एक बार ट्रेडर अपनी कमोडिटी चुनकर उस पेज पर जाता है। तो वहां जो लॉट असेइंग किए हुए होते हैं, वे उन्हें हरे रंग में दिखते हैं और उनके आगे असेइंग के सभी नतीजे लिखे होते हैं। सभी लॉट के आगे बोरियां, मात्रा, लॉट आईडी, कमीशन एजेंट इत्यादि का नाम लिखा होता है। स्क्रीन के ऊपर सत्र का समय भी लिखा होता है और सत्र का बचा हुआ समय भी स्क्रीन पर साफ नजर आता रहता है।
- यहीं कोई कारोबारी किसी भी किसान के किसी भी लॉट के लिए अपनी बोली लगा सकता है। बोली वो बदल भी सकता है लेकिन, घटा नहीं सकता। यहीं ओपन ई-टेंडर पेज पर हर कमोडिटी के लॉट और बोलियों की कुल संख्या भी दिखती है। हर मंडी में अलग-अलग कमोडिटी के लिए बोली लगाने का अंतिम समय अलग-अलग होता है। उसी लिहाज से बोली बंद होने के कुछ समय बाद सबसे ज्यादा बोली लगाने वाला ट्रेडर बोली जीत जाता है। होम पेज पर सभी विजेताओं की पूरी लिस्ट होती है। यहां कमोडिटी आईडी, ट्रेडर और कमीशन एजेंट के लिहाज से पूरी लिस्ट उपलब्ध हो जाती है। यहीं से एक बटन पर उन सभी किसानों के मोबाइल पर एसएमएस से यह जानकारी भी भेज दी जाती है, जिनके लॉट ट्रेड के लिए उस दिन बाजार में होते हैं। बोली के विजेता की घोषणा के बाद हर किसान के पास आधे घंटे का समय होता है अगर वो अपने लॉट के लिए घोषित कीमत पर अपना माल बेचने के लिए तैयार न हो तो। ऐसी स्थिति में ट्रेड रद्द हो जाता है और वह लॉट अगले दिन के ट्रेड में फिर शामिल होता है।
ई-मंडी में बहुत काम बाकी
अप्रैल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्धघाटन के बाद अगर e-NAM में तेजी नहीं आई है तो इसके लिए राज्य सरकारें भी जिम्मेदार हैं। एग्रीकल्चर सुधारों के लेकर अभी तक राज्य सरकारों ने सुस्ती दिखाई है। जैसे ई-मंडी का काम शुरू होने के लिए अभी तक सिर्फ 10 राज्य सरकारों ने कानून में संशोधन किया है। इसके अलावा मंडियों में जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे तेज स्पीड इंटरनेट, कम्प्यूटर सिस्टम जैसी चीजें अभी नहीं हो पाई हैं। इसके अलावा किसानों को इसके लिए जागरूक करना भी बहुत बड़ी चुनौती है।
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