शक्ति शरण
गाज़र की व्यावसायिक खेती पूरे भारत मे की जाती है इसका उपयोग सलाद, अचार एवं हल्वा के रूप मे किया जाता है। गाजर का रस कैरोटीन का महत्वपूर्ण स्त्रोत माना जाता है। कभी कभी इसका उपयोग मक्खन को रंग करने के लिये भी किया जाता है। गाजर मे थियामीन एवं राबोफलेविन प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है। संतरे रंग के गाजर मे कैरोटीन की मात्रा अधिक पाई जाती है।
बुवाई का समय : जुलाई से अक्तूबर 25 बुवाई
अन्तराल : बुवाई 45 सें.मी. के अन्तराल पर बनी मेंड़ों पर 2-3 सें.मी. गहराई पर करें और पतली मिट्टी की परत से ढक दें। अंकुरण के पश्चात् पौधाों को विरला कर 8-10 सें.मी. अन्तराल बनाएं।
खाद व उर्वरक: गोबर की खाद : 10-15 टन/है नाइट्रोजन : 70 कि.ग्रा./है फॉस्फोरस: 40 कि.ग्रा./है पोटाश : 40 कि.ग्रा./है. गोबर की खाद, सुपर फास्फेट और म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय डालें। यूरिया की आधी मात्रा बुआई के समय तथा शेष आधी मात्राा को दो बार, पहली मिट्टी चढ़ाते समय तथा दूसरी उसके एक माह बाद डालें।
सिंचाई व निराई-गुड़ाई : पर्याप्त नमी सुनिश्चित करने के लिए गर्मियों में साप्ताहिक अन्तराल पर तथा सर्दियों में 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें तथा यह स्मरण रखें कि नालियाें की आधाी मेंड़ों तक ही पानी पहुंचे। बुवाई के लगभग एक महीना पश्चात पौधा छंटाई के समय शेष आधाी नत्रजन की मात्रा के साथ-साथ मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें जिससे खरपतवार नियंत्रण भी हो जाएगा।
खरपतवार नियंत्रण : खेत की जुताई के पष्चात् खेत में आधाी मात्रा नत्रजन तथा सारा फॉस्फोरस व पोटाश मिला कर 45 सें.मी. के अन्तर पर मेंड तैयार करें और 3.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से स्टाम्प नामक खरपतवारनाषी का छिड़काव करें और हल्की सिंचाई करें या छिड़काव से पहले पर्याप्त नमी सुनिष्चित करें।
तुड़ाई व उपज : लगभग ढाई से तीन महीनों में गाजर की जड़ें निकास के लिए तैयार हो जाती हैं और औसतन 25 से 30 टन प्रति हैक्टर उपज हो जाती है।
बीजोत्पादन : चयनित जड़ों को रोपाई के लिए तैयार करते समय एक तिहाई जड़ के साथ 4-5 सें.मी पत्तो रखें। खेत को तैयार करते समय उसमें 15-20 टन गोबर की खाद, 40 कि.ग्रा. नत्रजन, 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 60 कि.ग्रा. पोटाश मिलाएं। जड़ों की रोपाई 60 ग 45 सेें.मी. पर करें और तत्पष्चात् सिंचाई करें। यह सुनिष्चित करें कि आधाार बीज के लिए पृथक्करण दूरी 1000 मीटर तथा प्रमाणित बीज के लिए 800 मीटर हो।
कटाई व गहाई : जब दूसरी अम्बल या शीर्ष बीज पक जाएं तथा उनके बाद में आने वाले शीर्ष भूरे रंग के हो जाएं तो बीज फसल काट लेनी चाहिए क्योंकि बीज पकने की प्रक्रिया एकमुष्त नहीं होती। इसलिए कटाई 3-4 बार करनी पड़ती है। सुखाने के पष्चात् बीज को अलग कर लें और छंटाई करके वायुरोधाी स्थान पर उनका भण्डारण करें।
बीज उपज : औसतन 400-500 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर बीज उपज हो जाती है।
प्रमुख रोग एवं नियंत्रण सर्कोस्पोरा पर्ण अंगमारी (सर्कोस्पोरा कैरोटेई) लक्षण: इस रोग के लक्षण पत्तियों, पर्णवृन्तों तथा फूल वाले भागों पर दिखाई पड़ते हैं। रोगी पत्तियां मुड़ जाती हैं। पत्ती की सतह तथा पर्णवृन्तों पर बने दागों का आकार अर्धा गोलाकार, धाूसर, भूरा या काला होता है। फूल वाले भाग बीज बनने से पहले ही सिकुड़ कर खराब हो जाते हैं।
नियंत्रण: बीज बोते समय थायरम कवकनाषी (2.5 ग्रा./कि.ग्रा बीज) से उपचारित करें। खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई पड़ते ही मेंकोजेब, 25 कि.ग्रा. कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 कि.ग्रा. या क्लोरोथैलोनिल (कवच) 2 कि.ग्रा. का एक हजार लीटर पानी में घोल बनाकर, प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
——————————————————————————————