मध्यप्रदेश में मक्का से आएगी नई हरित क्रांति

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मध्यप्रदेश में मक्का से आएगी नई हरित क्रांति

मक्का के क्षेत्र में मध्यप्रदेश मॉडल स्टेट बनने की राह पर है। राज्य के आदिवासी बाहुल्य ज़िले छिंदवाड़ा ने मक्का उत्पादन में कामयाबी की एक नई कहानी रची है।

अमिताभ अरुण दुबे

क्का एग्रोनॉमी में नई जान फूंक सकता है। गेहूं और चावल के बाद तीसरे सबसे बड़े अनाज के रूप में मक्का पहले से ही हमारी खाद्य जरूरतों को पूरा करता आया है। लेकिन फूड प्रोसेसिंग उद्योग के बढ़ते दायरे, मक्का से बनने वाली खाद्य सामग्रियों की वेरायटी और रेंज ने इसे सेंटर स्टेज पर ला दिया है।कमज़ोर मॉनसून के चलते बीते दो दशक खेती के लिहाज से बेहतर नहीं रहे। ऐसे हालात में किसानों का रूख उन फसलों की ओर ज्यादा बढ़ा, जो कम पानी में ज्यादा उत्पादन दे सकें।

मक्का में मॉडल स्टेट बनता मध्यप्रदेश

मक्का के क्षेत्र में मध्यप्रदेश कामयाबी की उम्दा नज़ीर पेश करता है। साल दर साल राज्य में मक्का का रकबा लगातार बढ़ रहा है। 1960 से 2015 के बीच मक्का का रकबा (क्षेत्रफल) 4.59 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 11.35 लाख हेक्टेयर यानी करीब 2.5 गुना तक हो गया है। जबकि फिलहाल एक अनुमान के मुताबिक ये करीब 13 लाख हेक्टेयर है। 1960 से 2015 के बीच मक्का का सकल उत्पादन 3.07 लाख टन से बढ़कर 15.30 लाख टन तक पहुंचा। जबकि इसकी उत्पादकता इस दौरान 669 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 1960 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक हुई। यानी इस दौरान करीब तीन गुना तक उत्पादकता बढ़ी।

मक्कामय बनता मध्यप्रदेश

साल   –     रकबा         –    सकल उत्पादन  –         उत्पादकता

1960 –   4.59 लाख हेक्टेयर –   3.07 लाख टन  –       669 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

2015 –   11.35 लाख हेक्टेयर –  15.30 लाख टन – 1960 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

(स्त्रोत- जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र छिंदवाड़ा) 

मक्का में मिसाल बना छिंदवाड़ा

पूरे देश में मध्यप्रदेश का आदिवासी बाहुल्य ज़िला छिंदवाड़ा मक्का के क्षेत्र में नई मिसाल बनकर उभर रहा है। खरीफ के इस सीज़न में यहां करीब 2 लाख 40 हज़ार हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में मक्का लगाई गई। जो कि देश के किसी भी ज़िले में मक्का का सबसे बड़ा रकबा है। मक्का के उत्पादन के लिहाज से छिंदवाड़ा ज़िला मध्यप्रदेश में टॉप पर है। तो उत्पादकता के लिहाज से देश में ये तमिलनाडु के बाद ये दूसरे नंबर पर आता है। छिंदवाड़ा में मक्का का औसत उत्पादकता 50.23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। जबकि तमिलनाडु की प्रति हेक्टेयर 65 क्विंटल उत्पादकता है।

मक्का क्रांति के जनक डॉक्टर के सी डबराल

मक्का क्रांति के जनक डॉक्टर के सी डबराल

मक्का क्रांति के जनक डॉक्टर के सी डबराल

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र,चंदनगांव, छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश)

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र,चंदनगांव, छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश)

मध्यप्रदेश और देश में मक्का की पैदावार में क्रांति के जनक स्वर्गीय डॉक्टर के सी डबराल की ने सत्तर के दशक में छिंदवाड़ा में रहकर मक्का की तीन संकुल प्रजातियां चंदन-1, चंदन-2 और चंदन-3 विकसित की थी। उस दौर में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से संबद्ध आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र चंदनगांव मक्का अनुसंधान केंद्र के नाम से चर्चित था। सत्तर के दशक में डॉक्टर डबराल ने इस संस्थान की कमान संभाली। उस दौर में साल भर में एक एकड़ में करीब तीन से चार क्विंटल ही मक्का बामुश्किल एक बार ही पैदा हो पाता था। डॉक्टर डबराल ने इस चुनौती को स्वीकार कर 1972 में चंदन मक्का 1 प्रजाति विकसित की। उसके अगले ही साल उन्होंने 1973 में चंदन मक्का-2 और 1976 में चंदन मक्का -3 के रूप में अधिक पैदावार देने वाली तीन किस्में विकसित की। जो मध्यप्रदेश में ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत के राज्यों में बेहद लोकप्रिय हुई। चंदन मक्का की ये तीनों किस्में पहाड़ी इलाकों में भी उपयोगी साबित हुई। किसान प्रति हेक्टेयर 45 से 48 क्विंटल मक्का उत्पादन हासिल करने में कामयाब हुए। डॉक्टर डबराल की इस उपलब्धि ने छिंदवाड़ा को पूरे देश में चर्चित कर दिया था। 1984 में डॉक्टर डबराल ने ऐच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। इसके बाद वो उत्तराखंड के अपने गृह ग्राम तिमली चले गए। उन्होंने यहां लंबे वक्त तक हिमालय की पहाड़ियों में कृषि अनुसंधान किया।

सत्तर के दशक में मक्काक्रांति से जुड़ी दुर्लभ तस्वीर, आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र के मक्का फार्म में डॉक्टर डबराल| डॉ डबराल ने यहां मक्का की तीन नई किस्में विकसित थी

सत्तर के दशक में मक्काक्रांति से जुड़ी दुर्लभ तस्वीर, आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र के मक्का फार्म में डॉक्टर डबराल| डॉ डबराल ने यहां मक्का की तीन नई किस्में विकसित थी

छिंदवाड़ा के वरिष्ठ पत्रकार जगदीश पवार बताते हैं कि डॉक्टर डबराल ने किसानों से ही नहीं आम लोगों से भी मक्का का नाता जोड़ा था। मक्का पर शोध के दौरान सवेरे सवेरे वो ढेर सारे बच्चों के साथ फार्म पर जाते थे। वो बच्चों को भी मक्का के बारे में कई सारी बातें बताया करते थे।जगदीश पवार कहते हैं कि डॉक्टर डबराल ने मक्का को जन अभियान बना दिया था। मध्यप्रदेश के ही नहीं देशभर के किसानों को मक्का से जोड़कर उन्होंने खुशहाली की नई राह दिखाई।

मक्का की किस्में ईजाद करने में भी आगे छिंदवाड़ा

मक्का की किस्मों के ईजाद में आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र ने डॉक्टर डबराल की परंपरा को आगे बढ़ाया है। 1972 से 1976 के बीच मक्का की तीन किस्मों चंदन मक्का 1, 2 और 3 के बाद 1996 में यहां जवाहर मक्का-8, 1998 में जवाहर मक्का-12, 2002 में जवाहर मक्का- 216 और 2006 में जवाहर पॉप-11 संकुल किस्में ईजाद की गई।

मक्का की संकुल किस्में और उत्पादन

 संकुल किस्म        किस्म के विकास का वर्ष         उत्पादन प्रति/हेक्टेयर

चंदन मक्का -1           1972                          48-50 क्विंटल

चंदन मक्का- 2           1973                          25-28 क्विंटल

चंदन मक्का-3            1976                          45-48 क्विंटल

जवाहर मक्का-8           1996                          40-42 क्विंटल

जवाहर मक्का- 12         1998                          42-45 क्विंटल

जवाहर मक्का- 216        2002                          50-55 क्विंटल

जवाहर पॉप- 11           2006                          20-25 क्विंटल

(स्त्रोत- जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र छिंदवाड़ा)

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर विजय पराड़कर से ख़ास बातचीत

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर विजय पराड़कर

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर विजय पराड़कर

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र चंदनगांव छिंदवाड़ा में मक्का के क्षेत्र में अनुसंधान किया जा रहा है। मक्का अनुसंधान से जुड़े डॉक्टर विजय पराड़कर से एग्रीनेशन ने ख़ास बातचीत की

मक्का के क्षेत्र में छिंदवाड़ा की कामयाबी की वजह क्या है?

छिंदवाड़ा का क्लाइमेट मक्का के लिए बेहद अनुकूल है। यही वजह है कि यहां साल दर साल रकबा, उत्पादन और उत्पादकता बढ़ती जा रही है।

छिंदवाड़ा में मक्का खेती का क्या खूबियां हैं?

छिंदवाड़ा के किसान सौ भी ज्यादा किस्म के मक्का के बीज लगाते हैं। देश में शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र है जहां इतनी किस्म का मक्का है। इसके अलावा यहां आदिवासी अंचलों में अच्छी किस्म के परंपरागत मक्का के बीज भी हैं। छिंदवाड़ा का मक्का वेरायटी और क्वालिटी दोनों में बेहतर है। जिसकी पूरे भारत में तेज़ी से डिमांड बढ़ रही है। तमिलनाडु जैसे मक्का उगाने वाले अव्वल राज्य में भी छिंदवाड़ा के मक्का की मांग है।

 

मक्का के क्षेत्र में अनुसंधान केंद्र में क्या काम हो रहें हैं?

आंचलिक अनुसंधान केंद्र में मक्का की नई किस्मों पर अनुसंधान के साथ आदिवासी अंचलों में पाए जाने पारंपरिक बीजों को संरक्षित करने उन पर शोध करने का काम भी किया जा रहा है।

खेती संकट से जूझते बुंदेलखंड जैसे इलाके में क्या मक्का वरदान बन सकती है?

बिल्कुल बुंदेलखंड जैसे इलाके में मक्का वरदान बन सकती है। क्योंकि कम लागत और कम समय और कम पानी में इसकी फसल ली जा सकती है। बुंदेलखंड की खस्ता हो चुकी खेती को संकट से उबारने में फसल के रूप में मक्का एक अच्छा समाधान साबित हो सकती है। हालांकि इसके लिए दीर्घावधि की एक व्यापक कार्ययोजना की बनानी होगी।

मक्का नई हरित क्रांति की बुनियाद कैसे बनेगा?

मेरा मानना है कि मक्का भविष्य ही नहीं वर्तमान भी है। बिल्कुल नई हरित क्रांति का रास्ता मक्का ही निकलेगी। एक ओर जहां मक्का धीरे-धीरे हमारी खाद्य जरूरतों के एक बड़े हिस्से को पूरा करने वाला बन रहा है। तो किसानों की आय की गारंटी भी बन गया है।

क्यों मुफीद है मक्का? 

मक्का के साथ एक नहीं कई खूबियां जुड़ी है। कम पानी में भी मक्का का उत्पादन अच्छा हो सकता है। मक्का की फसल साल भर लगाई जा सकती है। हालांकि रबी के मौसम में इसकी उत्पादकता ज्यादा मिलती है। प्रति हेक्टेयर बीज की लागत भी कम पड़ती है। मक्के की फसल से अनाज के साथ पशुओं के लिए चारा भी मिल जाता है। जरूरत पड़ने पर हरे भुट्टों को बेंचकर कमाई की जा सकती है। मक्का का इस्तेमाल कई तरह के उद्योगों में भी होता है। लिहाजा किसान को आय के एक नहीं कई सारे जरिये मिलते हैं।

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