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भारतीय चावल पर यूरोपीय यूनियन की पाबंदी

ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन भारतीय चावल के एक्सपोर्ट पर अड़ंगा डालने वाले यूरोपीय यूनियन के फैसले के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दखल देने की मांग की है। राइस एक्सपोर्टर्स के मुताबिक यूरोपीय यूनियन ऐसी धान के इंपोर्ट पर रोक लगा दी है जिसके उत्पादन में ट्रिसीक्लाजोल कीटनाशक का इस्तेमाल किया गया है। राइस एसोसिएशन के मुताबिक इससे चावल के एक्सपोर्ट और धान के किसानों को बहुत नुकसान होगा। भारत हर साल 40 लाख टन चावल एक्सपोर्ट करता है, जिसमें 3.5 लाख टन यूरोपीय देशों को होता है। इस पूरे मामले पर एग्रीनेशन के शक्तिशरण ने ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष – विजय सेटिया से बातचीत की

क्या है पूरा मामला

यूरोपीय यूनियन ने ऐसी धान के इंपोर्ट पर पाबंदी लगाने का एलान किया है जिसमें ट्रिसिक्लाजोल कीटनाशक का इस्तेमाल किया गया है। यूरोपीय यूनियन ने चावल में फ्यूजनासिड और ट्रिसिक्लाज़ोल को मौजूदा स्तर से 100 गुना तक कम कर दिया है। यह भारतीय चावल के इंपोर्ट पर प्रतिबंध के बराबर है।

भारत में 90 परसेंट से ज्यादा धान किसान इस कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं। भारत सालाना 2200 करोड़ रुपए का 40 लाख टन चावल का एक्सपोर्ट करता है। इसमें 3.5 लाख टन चावल यूरोपीय यूनियन को एक्सपोर्ट होता है। लेकिन अगर नियम नहीं बदले गए तो इस साल से चावल एक्सपोर्ट में बड़ी दिक्कत आ जाएगी।

ट्रिसिक्लाजोल से यूरोपीय यूनियन को क्या दिक्कत है

देखिए यूरोपीय यूनियन सिर्फ काल्पनिक अनुमान पर कार्रवाई कर रहा है। दरअसल अमेरिकी कंपनी डॉओ साइंस से ट्रिसिक्लाजोल के मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी मांगी गई थी। लेकिन कंपनी ने तय समय पर इसकी जानकारी नहीं सौंपी तो उसे 2019 तक का वक्त दे दिया गया है। लेकिन तब तक ऐसे चावल का एक्सपोर्ट रोकने का आदेश दिया गया है, जिसमें इस कीटनाशक का इस्तेमाल हुआ हो।

लेकिन क्या इस कीटनाशक से मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है? दूसरे एक्सपोर्टर देशों ने भी क्या ये मामला उठाया है?

इस कीटनाशक के इस्तेमाल से उगाई गई धान से बने चावल से मानव स्वास्थ्य को कोई नुकसान नहीं होता। यही वजह है कि अमेरिका, जापान, कनाडा जैसे दूसरे विकसित देशों ने ऐसी कोई पाबंदी नहीं लगाई है।

फिर भी आप किसानों को इसकी जानकारी क्यों नहीं देते कि वो इस कीटनाशक का इस्तेमाल ना करें

देखिए किसानों को इसकी जानकारी दे दी गई है। किसान और कृषि विज्ञानी मिलकर इसका विकल्प तलाश रहे हैं। लेकिन ये रातोंरात नहीं हो सकता, इसमें कुछ समय लगेगा।

इस पाबंदी का क्या असर होगा

इस पाबंदी का सबसे ज्यादा असर यह होगा कि 1 जनवरी 2018 से भारतीय चावल यूरोपीय यूनियन को एक्सपोर्ट नहीं हो पाएगा। इससे धान उत्पादक किसानों को नुकसान होगा। एक्सपोर्टर्स धान खरीदी से खुद को अलग कर लेंगे, जिससे किसानों की आय पर बुरा असर होगा और धान के दाम गिरेंगे। 15 से 17 लाख किसानों पर इसका असर होगा। इस बिजनेस से जुड़े बहुत से लोग बेरोजगार हो जाएंगे। चावल एक्सपोर्टर कंपनियों ने बैंकों से जो लोन लिया है उसको चुकाना मुश्किल हो जाएगा। इसका सीधा फायदा पाकिस्तान को मिलेगा क्योंकि वहां किसानों के पास इस कीटनाशक की उपलब्धता ही नहीं है।

ट्रिसिक्लाजोल का इस्तेमाल क्यों किया जाता है

धान को फंफूद से बचाने के लिए इस कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाता है। इस कीटनाशक के दुष्प्रभाव से जुड़ी अभी तक ऐसी कोई रिसर्च सामने नहीं आई है।  ट्राईसीक्लाज़ोल एक फंगीसाइड है जिसका व्यापक तौर पर इस्तेमाल होता है। भारतीय कृषि-जलवायु परिस्थितियों में यह धान की फसल को बचाने के लिए सबसे असरदार और सस्ता तरीका है। दुनिया के कई देशों में 30 सालों से इसका इस्तेमाल हो रहा है और अभी तक कोई भी स्वास्थ्य संबंधी नुकसान सामने नहीं आए हैं।

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