एग्रीनेशन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली. 4 सितम्बर 2018
रुई के दाम घट गए हैं क्योंकि कपास की नई फसल अब बाजार में आने लगी है. घरेलू देसी कपास वायदा में भी अगस्त महीना सबसे कमजोर रहा है. यही हाल हाजिर भाव का है.
कपास के दाम में सुस्ती क्यों?
- अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर छिड़ा हुआ है, जिसका असर रुई के बाजार में भी पड़ा है.
- घरेलू वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर शुक्रवार को रूई का अक्टूबर डिलीवरी वायदा22,860 रुपये प्रति गांठ बंद हुआ जो 60 रुपये की गिरावट के साथ था.
- एक गांठ में 170 किलो रुई होती है. हालांकि नीचे का भाव अगस्त महीने के सबसे निचले स्तर22,800 रुपये तक फिसल गया.
- यही रुई वायदा 10 अगस्त को24,280 रुपये गांठ तक उछल गया था यानी करीब 1500 रुपए की गिरावट
- बेंचमार्क कॉटन गुजरात शंकर-6 (29एमएम) शनिवार को 47,700 रुपये कैंडी रह गया जोकि अगस्त में ही 48,400 रुपये कैंडी तक पहुंच गया था. 1 कैंडी यानी 370 किलो.
नई फसल तैयार
पंजाब के अबोहर, मलौठ, फाजिल्का और हरियाणा, गुजरात के कई बाजारों में नई फसल के आने से खरीदारी कमजोर पड़ी है. दरअसल, कारोबारी इंतजार कर रहे हैं कि और आवक बढ़े ताकि दामों में कमी का फायदा उठाया जा सके. दाम टूटने के डर से कई बेचने वाले अपना माल बेचने भी लगे हैं.
रुई कारोबार के जानकारों के मुताबिक इस हफ्ते खरीफ की फसलों की बुआई के आंकड़ों ने भी बाजार की सुस्ती बढ़ाई है. वैसे रुई के दामों में नरमी की वजह अंतरराष्ट्रीय कारणों को बताया जा रहा है.
खास तौर पर अमेरिका में रुई के दामों में 1 माह में 8 परसेंट कमी आई. साथ ही तेजी का कोई ट्रिगर नहीं है. अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड में विवाद की वजह से सुस्ती है. क्योंकि अमेरिकी रूई का सबसे बड़ा खरीदार चीन है. अमेरिका दुनिया में सबसे बड़ा रूई एक्सपोर्टर है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को होने वाले चीन की 200 अरब डॉलर के इंपोर्ट पर25 परसेंट इंपोर्ट ड्यूटी लाने की चेतावनी दी है. जिससे कॉटन के दामों में लगातार गिरावट आ रही है.
हालांकि कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के प्रेसिडेंट अतुल गंतरा के मुताबिक रुई के आगे दाम मॉनसून ही तय करेगा. अगर मॉनसून तय वक्त से पहले वापस हो गया तो कपास की पैदावार घट सकती है. इसकी वजह है कि कपास की बुवाई इस साल देर से शुरू हुई है. ऐसे में सितंबर और अक्टूबर में फसल को पानी की जरूरत होगी।”
जाहिर है अगर मौसम ने साथ नहीं दिया तो पैदावार कम होगी जो दामों में तेजी लाएगी. कृषि मंत्रालय के आंकड़े भी यही संकेत दे रहे हैं कि अभी तक देश में करीब 118 लाख हेक्टेयर एरिया में बुआई हुई है जो पिछले साल के मुकाबले करीब 2 परसेंट कम है.
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