निधि दुबे
रायपुर
धान के कटोरे के तौर पर पूरे देश में विख्यात छत्तीसगढ़ में सरकार अब धान की खेती को हतोत्साहित करने पर ज़ोर दे रही है। बीते कुछ साल में सूबे में मॉनसून की चाल लगातार कमज़ोर रही, इससे गर्मियों में धान की फसल लेना किसानों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। लेकिन बावजूद इसके किसान गर्मियों में धान लगाते हैं। चूंकि धान की फसल में पानी की खपत बाक़ी फसलों की तुलना में बहुत ज्यादा होती है। इसके चलते सरकार हर बार गर्मियों में किसानों से धान नहीं लगाने की अपील भी करती है। इस बार भी पूरे देश में धान की फसल को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार का फरमान सुर्खियों में आया था। दरअसल, सरकार और प्रशासन के स्तर पर लगातार कोशिश की जा रही है कि किसान धान के अलावा दलहन और दूसरी फसलों की ओर फोकस करें। ऐसी फसलें जो कम पानी में किसानों को अच्छी आमदानी दे सकें। सूबे के कुछ किसानों ने इस ओर अब सोचना भी शुरू कर दिया है। लेकिन ज्यादातर अब भी धान को ही तरजीह देते हैं। यही नहीं प्रदेश के कृषि वैज्ञानिक भी दूसरी फसलों के प्रति किसानों की रुचि बढ़ाने के लिए अनुसंधान भी कर रहे हैं। सूबे के कृषि विभाग के अधिकारी भी बताते हैं कि धान की फसल अब किसानों के लिए उतनी मुफीद नहीं रह गई है। सीमांत और लघु श्रेणी के किसान कई बार लागत तक नहीं निकाल पाते हैं, जिसका असर उनकी आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है। कृषि विभाग से जुड़े अधिकारी कहते हैं कि किसान जितनी जल्दी दूसरी फसलों को अपनाएंगे उतना ही उनके लिए बेहतर होगा।
मक्का भी हो सकता है बेहतर विकल्प
मक्के की नई किस्मों पर अनुसंधान कर रहे, देश के बड़े वैज्ञानिकों का फोकस, अब ऐसे राज्यों में मक्के की फसल को प्रमोट करने पर है, जहां मक्के का रकबा कम है। छत्तीसगढ़ ऐसे ही राज्यों में चिन्हित किया गया है। जो पैदावार के लिहाज से एक बड़ा फर्क ला सकता है। वैज्ञानिकों का जोर इस बात पर भी है कि राज्य के किसान कम से कम गर्मियों के सीजन में मक्के की फसल को तरजीह दें। दरअसल, फिलहाल मक्के की फसल में अमेरिका की बादशाहत है। चूंकि भविष्य में खाद्य सुरक्षा की निर्भरता मक्के पर टिकी है। इसलिए भी मक्के पर वैज्ञानिक फोकस कर रहें हैं।
छत्तीसगढ़ में नई किस्म पर हो रही रिसर्च
राज मोहिनी कृषि महाविद्यालय और अनुसंधान केंद्र अंबिकापुर में मक्के की नई किस्मों पर रिसर्च चल रही है। यहां के मक्का वैज्ञानिक ए के सिन्हा बताते हैं कि अंबिकापुर में मक्के की ऐसी नई किस्मों पर शोधकार्य चल रहा है, जो कम समय में अधिक उत्पादन दें। इसके साथ ही ऐसी किस्मों पर भी शोध चल रहा है, जो विपरीत मौसम यानी कम बारिश या ज्यादा बारिश में भी बेहतर उत्पादन दें।आमतौर पर मक्के की फसल 90 से 100 दिन के बीच में तैयार हो जाती है। लेकिन जिन नई किस्मों पर अभी शोध हो रहा है। उसमें 60 से 70 दिन में फसल तैयार हो जाएगी। बीते कुछ सालों में गर्मियों में पानी की किल्लत किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। इस नजरिए से भी मक्के की फसल बेहतर विकल्प साबित हो सकती है।
“हम मक्के की उन नई किस्मों पर शोध कर रहें हैं, जो काफी कम अंतराल यानी करीब 60 से 70 दिन में फसल दे सकें। ये किस्म हर तरह के मौसम से अप्रभावित होंगी और उत्पादन भी ज्यादा देगी।”
– ए के सिन्हा, मक्का वैज्ञानिक, अंबिकापुर
मध्यप्रदेश में भी मक्के पर रिसर्च
मध्यप्रदेश में मक्का अनुसंधान में अग्रणी चंदनगांव कृषि अनुसंधान में मक्के की नई किस्म जेएच 1003, जेएम 215 और जेएम 218 पर शोध कार्य चल रहा है। करीब चार पांच साल में इसके बीज किसानों को मिलने लगेंगे। जेएच 1003 की खूबी है कि इसका तना फसल पकने के बाद भी हरा रहेगा। आमतौर पर भुट्टा पकने पर मक्का का तना भी पीला पड़ जाता है। लेकिन इस किस्म में वो हरा ही रहेगा। इससे पशुओं की चारे की समस्या का निदान भी होगा। जबकि जेएम 215 और जेएम 218 किस्में कम या ज्यादा पानी में अच्छी पैदावार देंगी।
“मौसम की अनियमितता की चुनौती से निपटने में मक्के की नई किस्में अधिक कारगर सिद्ध होंगी। इनसे अच्छी उपज और औसत भी मिलेगा।”
– वी के पराड़कर, मक्का वैज्ञानिक, चंदनगांव कृषि अनुसंधान केंद्र
—————————————————————————————————————————————–