विश्व पर्यावरण दिवस-2018 पर विशेष
सुरेश नौटियाल
भारत में पारंपरिक खेतीबाड़ी में मल्च अर्थात सूखे खर-पतवार का महत्व अधिक नहीं है. जब धान की फसल काटने के बाद लाखों-लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि में पराली (धान की सूखी पतवार) जलाई जाती है तब हमारा यह अज्ञान सामने आता है. पराली जलने से वायु प्रदूषण होता है, वह अलग. और इस प्रदूषण से लोगों को सांस की जो बीमारियां और दिक्कतें होती हैं, वे अलग से हैं. और यह तब होता है जब प्रत्येक किसान को मालूम है कि मल्च स्वत: जैविक खाद में बदल जाता है जो फसलों और पेड़-पौधों के लिए पोषक होता है.
हाल ही में सिंगापुर में लगभग 160 वर्ष पुराने ट्रॉपिकल सिंगापुर बॉटैनिक गार्डेन्स का वह हिस्सा देखने को मिला जो यूएन हेरिटेज बफर जोन में आता है. वहां पेड़ों और वनस्पतियों की देखभाल इस प्रकार की जाती है जिस प्रकार हम छोटे बच्चे को पालते हैं. हर पेड़ के नीचे मालियों ने गोल घेरे बना रखे हैं जिनमें मल्च अर्थात सूखी खर-पतवार को करीने से सजा रखा है. छोटे-छोटे पेड़ों और अन्य वनस्पतियों के चारों ओर भी मल्च सजा कर रखा है.
ऐसे ही एक पेड़ के नीच रखे मल्च में एक तख्ती लगी थी जिसपर पर्यटकों और आगंतुकों की सूचनार्थ लिखा था कि पेड़ों और वनस्पतियों की जड़ों के आस-पास मल्च बिछाया जाना आवश्यक होता है क्योंकि यह पेड़ों और वनस्पतियों के शीघ्र बढ़ने में सहायक होता है. वस्तुत: मल्च प्राकृतिक इंसुलेशन का काम करता है तथा फसल के अंकुरों, वनस्पतियों और पेड़ों की पौध को तेज धूप से बचाने का काम करता है. भूमि में नमी बनाए रखने का काम तो मल्च बहुत ही खूबी के साथ करता है. आपने जंगलों में देखा होगा कि प्राकृतिक रूप से एकत्रित होने वाला मल्च किस प्रकार वनस्पतियों, पेड़-पौधों और घास को नमी प्रदान कर उन्हें कड़ी धूप से बचाने का काम भी करता है.
ट्रॉपिकल सिंगापुर बॉटैनिक गार्डेन्स के एक पेड़ के नीचे जो तख्ती लगी थी उसपर यह भी स्पष्ट लिखा था कि मल्च में बहुत कुछ लाभदायक माइक्रो-आर्गेनिज्म होते हैं जो मल्च के जैविक तत्वों को डीकम्पोज करने में सहायक होते हैं. इस प्रकार से मल्च पेड़ों और वनस्पतियों को पोषक तत्व भी उपलब्ध कराते हैं.
इसलिए हमें चाहिए कि पेड़ों और वनस्पतियों या खेतों में पड़े मल्च को हटाने के बजाय उसका इस प्रकार से उपयोग करें. एक अच्छी बात यह है कि यह जो सब-कुछ सिंगापुर बॉटैनिक गार्डेन्स की इस तख्ती पर लिखा है वह मैंने स्वयं टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) में प्रयोग होते हुए देखा है. वहां खाड़ी के पास जाजल गांव में परमाकल्चर (सतत कृषि) कर रही तरुणा जैन तारुण्या फार्म्स के अंतर्गत तथा रजाखेत के पास भौन्याड़ा गांव में अनौपचारिक विद्यालय — आनंद वाटिका ग्रीन गुरुकुलम (एवीजीजी) — की सह-संस्थापिका और प्रिंसिपल अनीता नौटियाल आनंद वाटिका ऑर्गनिक के नाम से अपने-अपने खेतों में मल्च का खूब सदुपयोग कर रही हैं. दोनों ने बताया कि मल्च उपयोग करने से उन्होंने उत्साहजनक परिणाम देखे हैं.
नर्सरियों में भी मल्च का उपयोग बड़े स्तर पर होता है लेकिन पारंपरिक किसान आज भी खर-पतवार को जलाकर या एक ओर फेंककर कृषि करने में आस्था रखता है. यह दुखद ही है कि देश के अनेक भागों में अनेक जगह पराल/पराली नामक मल्च को लोग कृषि और वनस्पतियों के भरण-पोषण में उपयोग करने के बदले आज भी जला रहे हैं. इस प्रकार से वे फसलों और वनस्पतियों को पोषक तत्वों और तेज धूप से सुरक्षा देने वाली चीज को नष्ट ही नहीं करते, बल्कि वायु प्रदूषण भी बढ़ाते हैं.
अंत में इतना ही कि इस पुरातन सोच को हमें बदलना होगा. विज्ञान आज बहुत आगे बढ़ गया है. उसने हमें जो ज्ञान दिया है, उसे नकारने से काम चलने वाला है नहीं. काम तो उसे अपनाने से चलेगा. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पेड़ों, वनस्पतियों और फसलों को स्वाभाविक और प्राकृतिक रूप से खर-पतवार (मल्चिंग) की आवश्यकता होती है. लिहाजा, आज इस बारे में जागरूकता की आवश्यकता है. तरुणा और अनीता से भी कुछ सीखें जो इस महत्वपूर्ण बात को जान चुकी हैं. वैसे भी हमारे किसानों के पास ढेर सारा कृषि-ज्ञान है. उसे और आगे बढ़ाने और उससे एक-दूसरे को दीक्षित करने की आवश्यकता है.
—————————————————————————————————————————————-