एग्रीनेशन न्यूज़ नेटवर्क
रायपुर. 11 अप्रैल 2018
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विद्यार्थियों में उद्यमिता विकास को बढ़ावा देने की अभिनव पहल की गई है। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एसके पाटील ने कहा है कि यदि यहां के विद्यार्थी स्वयं की बीज कंपनी शुरू करना चाहते हैं तो उन्हें प्रारंभिक तौर पर बीज उत्पादन एवं प्रसंस्करण के लिए आवश्यक अधोसंरचनात्मक सुविधाएं विश्वविद्यालय से उपलब्ध होगी। उन्होंने कहा कि समूह के रूप में बीज कंपनी स्थापित करने वाले विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय गोदाम, ग्रेडर, पैकेजिंग मशीन आदि सुविधाएं न्यूनतम शुल्क पर मुहैया होगा।
बीज उत्पादन की अपार संभावनाएं
डॉ.पाटील विगत दिवस इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय और छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण कार्यशाला के शुभारंभ सत्र को संबोधित कर रहे थे। कार्यशाला में बायोवर्सिटी इंटरनेशनल नई दिल्ली के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. आरआर हंचीनाल ने विषय विशेषज्ञ के रूप में विद्यार्थियों को बीज उत्पादन तकनीक के बारे में जानकारी दी, जिससे उनकी शुरुआती लागत कम हो सके और वे आसानी से अपना व्यवसाय स्थापित कर सके। भारत में बीज उत्पादन व्यवसाय की अपार संभावनाएं हैं।
तीन लाख अरब डालर का व्यवसाय
प्रतिस्पर्धात्मक दौर में शासकीय एवं निजी क्षेत्र में नौकरियों की संख्या में लगातार कमी हो रही है, जिससे छात्रों को रोजगार मिलना कठिन हो गया है। ऐसे में छात्रों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने हेतु उद्यमिता विकास को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। इसी परिपे्रक्ष्य में विवि बीज उत्पादन का कार्य शुरू करने वाले छात्र समूहों के लिए विश्वविद्यालय की अधोसंरचनाएं न्यूनतम शुल्क पर उपलब्ध कराने का निर्णय लिया गया है। भारत में बीज व्यवसाय वर्तमान में तीन अरब डॉलर का है और यह प्रति वर्ष 14 से 16 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है।
500 बीज कंपनियां कार्यरत
भारत की आजादी के समय यहां एक भी निजी बीज कम्पनी नहीं थी जबकि आज 500 से अधिक सुसंगठित बीज कम्पनियां कार्यरत हैं। अब तो भारत से बीजों का निर्यात भी होने लगा है। भारत से म्यामार एवं दक्षिण कोरिया को कपास, पाकिस्तान को सूरजमुखी, शार्क देशों को मक्का एवं अफ्रीकन देशों को चावल एवं अन्य फसलों के बीजों का निर्यात किया जा रहा है। यहां की जैव सम्पदा काफी समृद्घ है तथा जैव प्रौद्योगिकी काफी विकसित है, जिसके कारण यहां नई प्रजातियों के विकास और बीज उत्पादन की काफी संभावनाएं हैं।
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