भारत में मिट्टी के स्‍वास्‍थ्‍य को बेहतर बनाने का समय आ गया है

ITC plans new integrated consumer goods plant in Uttar Pradesh
February 26, 2018
भारतीय किसान यूनियन का १४ सूत्रीय मांगपत्र
March 1, 2018
Show all

भारत में मिट्टी के स्‍वास्‍थ्‍य को बेहतर बनाने का समय आ गया है

राजेश अग्रवाल 

प्रबंध निदेशक, इंसेक्टिसाइड्स इंडिया लिमिटेड 

कृषि के क्षेत्र में तकनीक के बढ़ते प्रयोग के कारण लगातार साल दर साल अनाज के उत्‍पादन को तेजी से बढ़ाने में बहुत मदद मिली है। रिकॉर्ड के लिए, वर्ष 2016-17 में सरकार का अनुमान है कि कुल अनाज का उत्‍पादन 272 मिलियन टन होगा। हालांकि, भारतीय किसानों के परिपेक्ष्‍य में यह स्वचालित रूप से दर्शा नहीं पा रहा है। वैश्विक रूप से देखा जाये तो भारत का भूमि का क्षेत्रफल दुनियाभर का लगभग 2.5% है, और यहां की मानव आबादी पूरी दुनिया की कुल आबादी का 16% से अधिक है, साथ ही यहां पर दुनियाभर के लगभग 20% पशु हैं।

ऐसे में जाहिर है, लगातार बढ़ते हुए उत्पादन के दबाव की वजह से मृदा प्रजनन की क्षमता में लगातार गिरावट आई है- वर्तमान में किसानों के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है और किसान इसका सामना नहीं कर पा रहे हैं।

बढ़ती आबादी के साथ, सीमित उपजाऊ भूमि की उपलब्धता, छोटे-छोटे जमीन के हिस्‍से और मिट्टी की उर्वरता में गिरावट, निकट भविष्‍य में भारत के लिए खाद्य उपज की क्षमता को बनाये रखने में गंभीर मसले की तरह है, इससे उपज बढ़ने की बजाय कम होगी। एक अनुमान के मुताबिक, अनाज की मांग 2000 में 192 मिलियन टन से बढ़कर 2030 में 355 मिलियन टन होने की उम्मीद है।

लेकिन, क्‍या हमारी थकी हुई मिट्टी इस लक्ष्‍य को पूरा करने में सक्षम होगी?

अत्यधिक खेती भी समस्‍या

हाल के वर्षों में, भारत में सीमित कृषि भूमि पर बढ़ते दबाव की वजह से मिट्टी पर अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग क्षमता से अधिक मात्रा में हुआ है। अत्यधिक जुताई, मिट्टी के पुनरुद्धार के लिए जैविक प्रथाओं का अनुपालन न करना और सही तरीके से फसल बोने के क्रम का अनुपालन न करना। इससे मिट्टी की प्रजनन क्षमता में कमी आई है और उपज कम हुई, जो कि भारतीय किसानों के लिए बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहा है।

भारत में 147 मिलियन हेक्टेयर खेती योग्य जमीन पर मृदा क्षरण हो रहा है, जो कि एक गंभीर समस्‍या है और इसके कारण मिट्टी की उत्‍पादन क्षमता लगातार गिरावट हो सकती है। हाल के वर्षों में, विशेषज्ञों ने मिट्टी की उत्पादकता में गिरावट और प्रमुख फसलों की वृद्धि की दर में गिरावट देखा है जो कि चिंताजनक है। देश भर के कई कृषि बाहुल्‍य क्षेत्रों में, कार्बनिक पदार्थों की स्थिति में गिरावट, पोषक तत्वों की मांग और उपलब्‍धता में कमी, मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी, मृदा अम्लता, लवणता और सोडियम जैसे पोषक तत्वों की मांग और आपूर्ति के बीच अंतर पाया गया है।

अगर हम इस परेशानी का हल नहीं निकालते हैं और इसे नजरअंदाज करते हैं, तो वो वक्‍त दूर नहीं जब हमारे देश में उपजाऊ युक्‍त जमीन की कमी बहुत बड़े स्‍तर पर हो जायेगी और इसे सुलझाना बहुत मुश्किल होगा। विशेषज्ञों का कहना है, मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए कृषि की पुरानी तकनीकों को अपनाना होगा साथ ही एग्रोकेमिकल्‍स का उपयोग भी सही तरीके से करना होगा, तभी मिट्टी की उत्‍पादन क्षमता बढ़ेगी और मिट्टी के स्‍वास्‍थ्य में बेहतर संतुलन स्‍थापित हो सकेगा। एग्रोकेमिकल उद्योग को इस अवसर आगे आना चाहिए और ऐसे जैविक उत्पादों का उत्पादन करना चाहिए जो भारतीय मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।

मिट्टी की उर्वरता कम होने के क्‍या कारण हैं?

बाढ़, ज्वालामुखी और भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदाओं के अलावा मिट्टी की उत्पादक क्षमता कम होने के लिए वनों की कटाई, औद्योगिक अपशिष्टों का खराब प्रबंधन, मवेशियों की चराई और शहर का विस्तार जैसे कई मानवों द्वारा पैदा विकसित किये गये कारक हैं। अनुपयुक्त कृषि पद्धतियों के कारण व्यापक भूमि क्षरण का किसानों की खाद्य और आजीविका सुरक्षा पर प्रत्यक्ष और प्रतिकूल असर पड़ता है। अनुचित कृषि पद्धतियां इसमें बहुत योगदान देती हैं, अत्यधिक खेती करना, लगातार फसल बोना, पर्याप्‍त मात्रा में सिंचाई न करना और जल प्रबंधन न करना साथ ही सही समय पर फसलों को न बोना भी इसके लिए जिम्‍मेदार कारक हैं। मृदा कार्बनिक पदार्थों में गिरावट मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को घटाती हैं और इससे उपज कम होती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सॉयल साइंस द्वारा इस विषय पर तैयार किए गए एक दस्तावेज के मुताबिक, बढ़ती खाद्य मांगों के विपरीत, गहन फसल प्रणालियों के तहत लागू उर्वरकों के लिए उत्पादकता और फसल की प्रतिक्रिया की दर साल दर साल घट रही है। वर्तमान में अधिकांश पोषक तत्वों के उपयोग लिए जरूरी पोषक तत्वों के उपयोग में कमी देखी जा रही है। उदाहरण के लिए, फास्फोरस को लिया जाये तो, इस पोषक तत्‍व की मिट्टी के जरूरत के मुताबिक उपयोग 15-20% कम हो रहा है; सल्फर 8-12% और नाइट्रोजन 30-50% उपयोग कम हो रहा है, मिट्टी की रासायनिक, शारीरिक और जैविक स्वास्थ्य में गिरावट इस स्थिति के लिए भी जिम्मेदार हैं। किसानों द्वारा अपनायी जाने वाली पारंपरिक प्रथाओं जैसे कि कुछ समय के लिए भूमि को बंजर ही छोड़ देना ताकि ये दोबारा अपनी उत्‍पादन क्षमता को प्राप्‍त सके या फिर सही समय पर सही फसल को न बोना भी मिट्टी की क्षमता को कमजोर कर रहा है। जिससे देशभर में मिट्टी के कार्बनिक कार्बन (एसओसी) सामग्री में 0.3 – 0.4 प्रतिशत की कमी हो रही है जबकि आदर्श रूप से यह 1 से 1.5 प्रतिशत होना चाहिए। (कार्बनिक पदार्थ कार्बनिक रूपों में नाइट्रोजन, सल्फर और पोटैशियम और कैल्शियम जैसे अन्य आवश्यक पोषक तत्वों को धारण करके मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अक्सर जुताई से कार्बनिक पदार्थों की हानि तेजी हो जाती है और ये पोषक तत्‍व इसे रोककर रखते हैं।)

मृदा जैविक कार्बन नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पौधों के विकास के लिए अन्य पोषक तत्वों को लेकर मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, मृदा कणों को एक साथ मिलकर स्थिर समुच्चय के रूप में मिट्टी के गुणों जैसे कि पानी की क्षमता बनाये रखकर और गैसीय आदान-प्रदान और जड़ों को विकसित करता है, मिट्टी के अंदर के जीवों और वनस्पतियों के लिए खाद्य स्रोत के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है और यहां तक ​​कि फसल संबंधित रोगों को दबाने के लिए और यह जहरीले और हानिकारक विषाक्‍त पदार्थों और धातुओं के स्राव को रोकने के लिए प्रतिरोधक के रूप में कार्य करता है।

वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड को छोड़ने वाली मानव गतिविधियों के परिणामस्वरूप, वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ गयी है और इसे ही ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के खतरे बढ़ रहे हैं। मृदा जैविक कार्बन, मिट्टी में कार्बन को बढ़ने के पीछे जिम्‍मेदार कारकों में सबसे बड़ा कारक है, जिसकी मात्रा वातावरण और वनस्‍पति में लगभग दोगुना है। यदि कार्बन कार्बन के रूप में मिट्टी में अधिक जमा हो जाता है, तो यह वातावरण में मौजूद कार्बन को कम करेगा और इससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की समस्या को कम करने में मदद मिलेगी।

जैविक उत्पादों में अधिक से अधिक निवेश की आवश्यकता है

यह सब हमें इस महत्वपूर्ण प्रश्न के बारे में बताता है कि हम कैसे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि भारत की बढ़ती हुई खाद्यान्न की जरूरतों को कैसे पूरा किया जाए, साथ ही साथ मिट्टी की स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता भी बढ़े और और बेहतर हो। और वास्‍तविक जवाब जैविक उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार, एग्रोकेमिकल्स के विवेकपूर्ण उपयोग के प्रचार, उर्वरकों और कीटनाशकों पर अत्यधिक निर्भरता को कम करते हुए बुद्धिमत्‍तापूर्वक फसल बोने जैसी प्रथाओं को पुनर्जीवित करने में भी निहित है।

दीर्घकालिक रूप से कृषि स्थिरता में सुधार करने की दृष्टि से, इंसेक्टिसाइड्स इंडिया लिमिटेड ने उन उत्पादों का उत्पादन करने पर काम शुरू किया है जो भारत की खराब मिट्टी के स्वास्थ्य को बदलकर बेहतर बना सकते हैं। हमारी नवीनतम खोज काया कल्प एक जैव उत्पाद है जिससे मिट्टी की जैविक क्षमता और उत्पादकता में सुधार करने के लिए इसमें पोषक तत्वों की भरपाई, कार्बनिक कार्बन बढ़ाना, और इसके भौतिक और रासायनिक गुणों में सुधार करके बनाया गया है।

मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाये रखकर खाद्य उत्पादन को बढ़ाना केवल किसानों और सरकार काम ही नहीं होता है। एग्रोकेमिकल उद्योग की भी ज़िम्मेदारी है कि वे जैविक उत्पादों में एक नए उत्साह के साथ निवेश करें जो कि मिट्टी के स्वास्थ्य को व्यवस्थित रूप से दोबारा जीवंत कर सके। उसी समय, किसानों को शिक्षित करने की भी आवश्यकता है, ताकि वे अपने पोषक तत्वों की मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने, फसल रोटेशन जैसे निम्नलिखित तरीकों से और गाय के गोबर और सूखे पत्तियों जैसे जैविक खाद का प्रयोग, आदि क्‍या-क्‍या उपाय अपनायें जिससे मिट्टी की उपज बढ़ सके। यह उन्हें एग्रोकेमिकल्स के विवेकपूर्ण उपयोग के बारे में शिक्षित करने और रासायनिक और जैविक उत्पादों के बीच एक अच्छा संतुलन प्राप्त करने मदद करेगा – जो भारत के खाद्य की स्थिरता के लक्ष्यों को पूरा करने लिए महत्वपूर्ण हैं।

—————————————————————————————————————————————–